Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२४४ विवेक करना।

जो अशुद्धता दिखती है वह है तो सही। तेरी कुछ मलिनता है। वह क्या है? ्र द्रव्य-से शुद्ध हूँ, द्रव्य तेरा शुद्ध है, परन्तु अभी मलिनता तो दिखती है। वह पर्यायकी है। इसलिये पर्यायका ख्याल रखकर शुद्ध पर्याय प्रगट कर। तेरी द्रव्यदृष्टिके जोरमें लीनता (करके) शुद्ध पर्याय प्रगट कर तो अशुद्धता टल जायेगी। ऐसे विवेक करनेका है। तो पुरुषार्थ उठेगा।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! शुद्धता तो त्रिकाल द्रव्यमें त्रिकाल रहती है और अशुद्धता पर्यायमें होती है। तो क्या द्रव्य और पर्याय ऐसी सीमावाले दो भाग द्रव्यमें है?

समाधानः- नहीं, वस्तु तो अनेक स्वभाववान है। द्रव्य जो मूल वस्तु है उसमें अशुद्धताका प्रवेश हो जाय तो द्रव्यस्वभावका नाश हो जाय। मूल वस्तुमें कहीं अशुद्धताका प्रवेश नहीं होता। परन्तु वह अशुद्धता ऊपर-ऊपर है। जैसे स्फटिक निर्मल है, लाल- पीला (रंग) उसके अन्दर प्रवेश हो जाय तो स्फटिक ही न रहे। परन्तु लाल-पीला जैसे ऊपरका प्रतिबिम्ब है, वैसे परिणमता स्फटिक, परन्तु वह ऊपर है। अन्दर तदगतरूपसे प्रवेश नहीं होता, उसके मूलमें-तलमें।

वैसे द्रव्य स्वयं शुद्ध रहता है, परन्तु उसकी पर्यायमें ऊपर-से सब मलिनता होती है। अनादिका जो उसे कर्मका संयोग और पुरुषार्थकी कमजोरीके कारण पर्यायमें मलिनता होती है। ऐसा द्रव्य-पर्याय वस्तुका स्वभाव है। द्रव्य-गुण-पर्याय। मूल वस्तुमें शुद्धता रहती है और पर्यायमें अशुद्धता होती है। अनादि-से ऐसे ही है। पानी स्वभाव-से निर्मल है। फिर भी उसमें कीचडके निमित्त-से मलिनता होती है। मूलमें उसकी शुद्धता जाती नहीं। मूलमें-से शुद्धता नहीं जाती है। ऊपर-से सब मलिनता होती है। मूल जो वस्तु है उसमें शुद्धताका प्रवेश नहीं होता। ऊपर-ऊपर रहती है। परन्तु वह मान लेता है कि मेरेमें प्रवेश हो गया है। ऐसा बनता है।

इसलिये दो भाग इस प्रकार-से है। मूल तल और ऊपर-ऊपर सब पर्याय है। उसकी परिणति भले लाल-पीली हो, परन्तु मूल वस्तुमें उसका प्रवेश नहीं होता। वैसे ज्ञायक स्वभाव ऐसा है। उसके मूलमें मलिनता नहीं होती। परन्तु उसकी परिणति ऐसी अशुद्धरूप होती है। उसको पलट सकता है। भाग नहीं है। वह अंश है और यह अंशी है। उसके अंशमें ऐसा होता है।

मुमुक्षुः- तो फिर सब सरल हो जाय। लेकिन द्रव्य हाथमें नहीं आता।

समाधानः- मूल उसका तल हाथ लग जाय तो सब सरल है। (विभावभाव) सब ऊपर तिरते हैं, मूल अधिक आत्माको जाने कि मैं अधिक हूँ, मैं ज्ञायक स्वभाव हूँ। वह सब भिन्न है। मूल उसके हाथ लग जाय तो सब सरल है। उसका स्वभाव