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भेदज्ञान करके आत्माकी पहचान कैसे हो? और उसके लिये वांचन, विचार (आदि)। आप लोग सुनते हो न। याद नहीं रहे उसका कुछ नहीं, अन्दर सच्ची भावना और रुचि जागे कि ये कुछ अपूर्व है और आत्माका ही करने जैसा है। याद न रहे तो कोई दिक्कत नहीं है। परन्तु समझमें आये, ग्रहण हो (वह जरूरी है)।
मुमुक्षुः- पढना नहीं होता है इसलिये याद भी नहीं रहता।
समाधानः- पढना न हो तो सुनना। किसीको कुछ नहीं आता है तो भी अन्दर- से (प्राप्त कर लेते हैं)। शिवभूति मुनि थे, उनको कुछ नहीं आता था। गुरुदेवने कहा, रोष करना नहीं, द्वेष करना नहीं। मातुष, मारुष ऐसा कहा तो वह भी याद नहीं रहा। फिर बाई दाल धो रही थी। (उन्हें याद आ गया कि) मेरे गुरुने कहा था कि, छिलका अलग है और दाल अलग है।
वैसे आत्मा भिन्न है और विभाव भिन्न है। गुरुने कहा वह आशय ग्रहण कर लिया। मासतुष हो गया। आत्मा भिन्न। दाल अलग, छिलका अलग। वैसे आत्मा भिन्न और विभाव भिन्न है। ऐसा करके भेदज्ञान करके अंतरमें ऊतर गये। मूल प्रयोजनभूत ग्रहण (होना चाहिये), याद न रहे, परन्तु प्रयोजनभूत ग्रहण हो और अपूर्व भावना जागे, प्रयत्न जागे तो भी लाभ होता है। उसमें ज्यादा याद रहे, या ज्यादा पढे, उसकी कोई जरूरत नहीं है। अपनी अन्दर-से तैयारी हो तो थोडेमें भी लाभ हो जाता है।