Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२४८ होते हैं, ऐसे सदगुरुकी वाणी होती है, कोई अलग ही स्वरूप बताते हैं। बाहर-से सब कर लिया, छोड दिया, त्याग कर दिया, सब किया परन्तु अन्दर समझ बिना, यथार्थ ज्ञान बिनाकी क्रियाएँ सब व्यर्थ जाती है।

शुभभाव-से पुण्य बँधे और पुण्य-से स्वर्ग मिले। वह समझे बिनाकी (क्रिया है)। अंतरमें यथार्थ समझपूर्वक जो परिणति प्रगट हो वह अलग होती है। इसलिये समझ करनी। पहले आत्माको पहचाननेकी जरूरत है। यथार्थ सत वस्तु आत्मा क्या है, उसे पीछाननेकी जरूरत है। बाहर संप्रदायमें जीव अनन्त काल जन्मा है, बाहरका मुनिपना अनन्त बार लिया है। सब किया है, परन्तु मोक्ष नहीं हुआ है।

उनका उपदेश जिन्होंने सुना है, ऐसे बहुत मुमुक्षु हैं। उन्हें पूछ लेना। बरसों तक उन्होंने वाणी बरसायी है। उन्होंने क्या स्वरूप कहा है? उन्होंने क्या बात कही है? उनके मुुमुक्षु हर गाँवमें होते हैं, उन्हें पूछ लेना। सबको जागृत किया है। तो भी कोई- कोई बेचारे रह गये। पीछे-से जागे।

जन्म-मरण, जन्म-मरण चलते रहते हैं। उसमें मनुष्य भवमें अपने आत्माका कुछ हो तो कामका है। बाकी तो सब जन्म-मरण अनन्त-अनन्त किये। उसमें गुरुदेव मिले और यह मार्ग बताया। यह मार्ग तो कोई अपूर्व है। अंतर दृष्टि करके आत्माको अन्दर- से ग्रहण कर लेना वही मार्ग है। सच्चा तो वह है। अंतरमें शरीर भिन्न, आत्मा भिन्न, सब भिन्न है। अन्दर आत्मा अनन्त ज्ञान-से भरा, अनन्त आनन्द-से भरा ऐसा आत्मा है। अनन्त गुण-से भरा है।

सब विकल्प है, विकल्प-से भी आत्मा भिन्न है। आत्माको पहचाननेका प्रयत्न करनेकी जरूरत है, इस मनुष्य जीवनमें। उसके लिये जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र, उन पर भक्ति एवं महिमा आये और चैतन्यकी महिमा आये वह करना है। जन्म-मरण जीवने अनन्त किये हैं। जीवने, एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है और एक जिनेन्द्र नहीं मिले हैं। मिले तो स्वयंने पहिचाना नहीं है। लेकिन वह एक सम्यग्दर्शन अपूर्व है। बाकी सब पदवी जगतमें प्राप्त हो चूकी है, देवलोककी और सब। परन्तु एक आत्मा प्राप्त नहीं किया है और गुरुदेवने आत्माका स्वरूप बताया और करने जैसा वह है।

इस लोकमें जितने परमाणु जीवने ग्रहण करके छोडे, सब क्षेत्र पर जन्म-मरण किये, सब कालका परिवर्तन किया, विभावके सब भाव कर चूका, परन्तु एक आत्मा प्राप्त नहीं किया है। (आत्मा) एक अपूर्व है। मनुष्य जीवनमें हो तो वह नया है, बाकी कुछ नया नहीं है। बाकी बाहरमें जीवने क्रियाएँ बहुत की, शुभभाव किये, पुण्य बाँधा, देवलोकमें गया, परन्तु भवका अभाव नहीं किया। भवका अभाव हो, वह मार्ग गुरुदेवने बताया। आत्माको भिन्न पहचान लेना। करना वह है।