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बात जिसमें आती हो और ऐसे आत्माका उपदेश जहाँ मिलता हो, उसका विचार करनेकी आवश्यकता है।
आत्मा भिन्न है और ये सब भिन्न है। आत्मा भिन्न ज्ञात हो तो फिर बाहरका संप्रदाय कौन-सा होता है, वह बादमें मालूम पडता है। संप्रदायमें-से मोक्ष नहीं होता। परन्तु अंतरमें-से मोक्ष होता है। परन्तु अंतरमें-से जब मोक्ष होता है, तब अमुक जातका ही मार्ग होता है। वह मार्ग कौन-सा है, उसका बादमें विचार करना। परन्तु पहले आत्मा भिन्न है। आत्माका मोक्ष अभी तक क्यों नहीं हुआ? इसलिये अंतरमें कोई मार्ग ही अलग है। उस मार्गका पहले विचार करने जैसा है। किसी भी संप्रदायमें- से मोक्ष नहीं होता, परन्तु अंतरमें-से मोक्ष होता है। अतः अंतरमें देखना है। अंतर दृष्टि करनी है।
जिसमें आत्माकी बात आती हो, जिसमें आत्माका कोई अपूर्व अनुपम स्वरूप आता हो, जिसमें आत्माकी स्वानुभूतिकी बात आती हो, जैसे सिद्ध भगवान है, वैसा आत्माका स्वरूप है, उसकी स्वानुभूति अन्दरमें स्वयं आत्माको पहचाने तो उसकी स्वानुभूति होती है, वह बात कौन करता है? उसके उपदेशमें कोई अपूर्वता होती है। श्रीमदकी वाणी, गुरुदेवकी वाणी, वह कोई अपूर्व वाणी है। उस वाणीमें अन्दर कुछ अलग ही होता है। उसका विचार करनेकी आवश्यकता है।
बाकी जीव बाहरका बहुत बार करता है। वह शुभभाव भी करता है, बाह्य क्रिया (करता है), पुण्य बाँधे, देवमें जाये, फिर देवमें-से परिभ्रमण खडा ही रहता है। इसलिये आत्मा अन्दर भिन्न है और वह अंतरमें-से भिन्न पड जाय तो अंतरमें मुक्ति होती है। पहले आंशिक होती है, बादमें पूर्ण होती है।
पहले सम्यग्दर्शन होता है। अनादि काल-से जीवने सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है। ये वाडाका माना हुआ सम्यग्दर्शन वह सम्यग्दर्शन नहीं है। सम्यग्दर्शन अंतरमें रहा है। जीव, अजीव सब ऊपर-से मान लिया, वह सम्यग्दर्शन नहीं है। सम्यग्दर्शन अंतरमें भिन्न पडकर आत्माकी अपूर्व प्रतीति करके अन्दर स्वानुभूति हो तो वह सम्यग्दर्शन है। और वह सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है और अंतरमें चारित्र प्राप्त होता है। अन्दरमें लीनता रूप चारित्र हो तो उसमें उसके केवलज्ञान और उसमें उसे मुनिदशा अंतरमें-से आती है। और फिर बाहरका परिवर्तन (होता है)। अंतर पलटे तो बाहरका परिवर्तन होता है। बाहरका परिवर्तन कैसा होता है, वह उसको स्वयंको मालूम पडता है। परन्तु पहले सम्यग्दर्शन हो और अंतर दृष्टि, अध्यात्मकी आत्माकी बात किसमें आती है, समझनेकी जरूरत है। और आत्माकी बातें जिन्होंने की हो, जिस महापुरुषने, वह समझनेकी जरूरत है। संप्रदायकी बातमें पडनेके बजाय अन्दर आत्माकी बात कौन करता है? ऐसे शास्त्र