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वे गृहस्थाश्रममें होते हैं। उन्हें वैराग्य भी होता है। अमुक कार्योमें जुडा है। इसलिये देव-गुरु-शास्त्रके प्रशस्त भावोंमें होता है। मुनि हो तो उसे देव-गुरु-शास्त्रका शुभ विकल्प होते हैं। परन्तु दीक्षा लेते समय उन्हें बारह भावना मुख्य होती है। क्योंकि उन्हें उस वक्त दीक्षाकी भावना आयी है। एकदम वैराग्य दशा हो गयी है। उस वैराग्यके साथ बारह भावनाका सम्बन्ध है।
देव-गुरु-शास्त्रके विकल्प देव-गुरु-शास्त्रकी भक्तिके साथ सम्बन्ध है। शास्त्रका श्रुतके साथ सम्बन्ध है। जैसी उसकी परिणति हो उस प्रकारके उसे भाव आते हैं। कोई जातके प्रसंगानुसार मुख्य हो जाता है। करनेका एक ही है, अपने पुरुषार्थकी मन्दता हो, इसलिये आगे नहीं बढ सकता। पुरुषार्थकी तीव्रता हो, अन्दर लगन, महिमा बढ जाय तो स्वयं आगे बढता है। जबतक लगनी, महिमा बढते नहीं है, पुरुषार्थकी मन्दता हो तो बाहरमें कोई भी प्रसंगमें वह खडा रहता है। अमुकमें (विकल्पमें) ही खडा हो ऐसा नहीं है। कोई भी प्रसंगमें खडा रहता है। कोई शुभभावनामें खडा रहता है।
वह स्वयंको विचार लेना। या तो निर्णयमें या ज्ञानमें.. उसका स्वयं विचार करके अपनी दृढता करे। अपनी लगनी, महिमा बढाये, पुरुषार्थकी तीव्रता करे, अपनी परिणतिको वह स्वयं ही जान सकता है।
समाधानः- .. ज्ञायक जाननेवाला है। उसकी मुक्ति कैसे हो? अनादि काल- से मुक्ति क्यों नहीं हुयी है? अनन्त काल-से सब किया, जीवने बाहरकी क्रियाएँ की है, सब शुभभाव किये तो देवमें गया। देवमें-से भी वापस आया है। परिभ्रमण तो खडा है। उसका कारण क्या? अभी तक मुक्ति क्यों नहीं हुयी है? मुक्ति नहीं होनेका कारण क्या है? इसलिये मुक्तिका मार्ग अंतरमें रहा है।
लोग अभी जो बाहरमें पडे हैं कि बाहर-से इतना कर ले या इतना त्याग कर ले या इतने उपवास कर ले, ये कर ले, वह सब बाहर-से (करते हैं), परन्तु अंतर पलटना चाहिये (वह नहीं करते)। धर्म तो अंतरमें रहा है। इसलिये आत्माको पहचानना। आत्मा वस्तु क्या है? जैसे सिद्ध भगवान हैं, वैसा आत्माका स्वरूप है। ये शरीर वस्तु अलग है और आत्मा अलग है। ये देह और आत्मा भिन्न हैं। आत्मा तो शाश्वत है, दूसरी गतिमें जाता है। जो भाव किये उस अनुसार उसे गति मिलती है। परन्तु परिभ्रमण मिटता नहीं है, उसका कारण क्या? स्वयंने आत्माको पीछाना नहीं है।
अन्दर जो विकल्प आये, वह विकल्प भी आत्माका स्वरूप नहीं है। उससे आत्मा भिन्न है। आत्माकी पहिचना कैसे हो? और आत्माकी बात किसमें आती है? और आत्माका स्वरूप कौन बताता है? वह कोई महापुरुष होते हैं, वे आत्माका स्वरूप बताते हैं। ऐसे कोई अध्यात्म शास्त्र होते हैं, उसमें आत्माकी बातें होती हैं। आत्माकी