Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1850 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-६)

२७० आत्मा भिन्न, धर्म क्रिया-से नहीं है, धर्म अंतरमें है, शुभभाव पुण्यबन्ध है। अन्दर शुद्धात्मामें परिणति प्रगट होने-से धर्म होता है। सब उन्होंने प्रकाशित किया है। समयसारका अर्थ कौन समझता था? एक-एक शब्दका अर्थ करनेवाला कौन था? कोई भी शास्त्र ले, उसके एक-एक शब्दका अर्थ खोलनेवाला था कौन? कोई खोल नहीं सकता था।

अभी गुरुदेवके प्रताप-से सब शास्त्र पढने लगे। एक शब्दका अर्थ खोलकर, एक- एक शब्दका अर्थ खोलकर कितना समय, उसमें कितना विस्तार करते थे। वह किसीमें शक्ति नहीं है। अभी कोई पण्डित ऐसा कर नहीं सकते हैं। समयसार या अध्यात्म शास्त्रोंको कौन जानता था।

मुमुक्षुः- दिगंबर तो ऐसा समझते थे कि हम तो जन्म-से ही सम्यग्दृष्टि है। फिर तो बात ही कहाँ रही।

समाधानः- जन्म-से हो सकता है? वाडा मात्र कहीं सम्यग्दर्शन देता नहीं। सम्यग्दर्शन तो आत्मामें प्रगट होता है। अनन्त काल-से जीवने.. कहते हैं न कि पंचमकालमें तीर्थंकरका जीव आये तो भी माने नहीं। अनन्त कालमें समवसरणमें-से जीव ऐसे ही वापस आता है। समवसरणमें भगवान मिले तो भी स्वंय अपनी इच्छानुसार परिणति प्रगट करता है। सब स्वतंत्र है।

मुमुक्षुः- गुरुदेवने प्रकाशमें रखा तो यही पण्डित लोग चूँ.. चूँ.. करते थे। येही पण्डित थे। गुरुदेवने तत्त्व प्रकाशित किया तब भी इतना ही उहापोह करते थे। जहाँ- तहाँ पेम्पलेट फेंकते थे। उनके विरूद्धमें लिखते थे, ऐसे है, वैसे है, कितना लिखते थे।

समाधानः- स्वयंको सुधरना है (और) दूसरेको सुधारना है। पहले अपने आत्माका कल्याण करे। दूसरेको सुधारनेके लिये मानों कोई मार्ग नहीं जानते हैं, हम ही जानते हैं। ऐसा उन लोगोंको हो गया है।

मुमुक्षुः- आपके आशीर्वाद-से पंच कल्याणक बहुत अच्छी तरह उजवाये। सब तन-मन-से ऐसे जुड जाय कि सोनगढमें रोनक हो जाय।

समाधानः- सबकी भावना है, भावना-से सब किया है और गुरुदेवका प्रताप है। समाधानः- जीव वापस आता है। मात्र बाह्य दृष्टि-से देखता है। अंतर दृष्टि- से देखा नहीं है, भगवानको पहचाना नहीं है। तेरे आत्मामें ही सब है। अन्दर गहराईमें ऊतरकर देख। समवसरणमें जैसे भगवान हों, वैसे शाश्वत नंदीश्वरमें शाश्वत भगवान हैं। कुदरतकी रचना ऐसी बनी है। परमाणुकी रचना भगवानरूप हो गयी है। जिनेन्द्र देवकी जगतमें ऐसी महिमा है कि परमाणु भी जिनेन्द्र देवरूप परिणमित हो गये हैं, तीर्थंकररूप परमाणु परिणमित हो जाते हैं। रत्नके रजकण वैसे परिणमित हो जाते हैं।

.. शास्त्रमें आता है न? भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको पहिचाने तो अपने द्रव्य-