उसकी पर्यायमें साधनाकी पर्याय तो चालू ही रहती है। ऐसा कोई वस्तुका स्वरूप है कि अपरिणामी और परिणत दोनों साथमें ही रहते हैं।
उसमें आगे आता है कि द्रव्य और पर्याय दोनों युग्म है। वह दोनों साथमें ही रहते हैं। परिणामी और अपरिणामी दोनों साथमें होते हैं और उसमें साधना होती है। बन्ध-मोक्षको नहीं करता है, वह साधक अवस्थावाले जीवने ही बराबर जाना है। बुद्धि- से जाना वह अलग बात है। ये तो अंतर परिणतिरूप-से जाना है। द्रव्य अपेक्षा- से उसका आत्मा, उसे द्रव्यदृष्टि प्रगट हुयी, द्रव्य पर जो दृष्टि स्थापित की इसलिये वह वास्तविक रूप-से वह बन्ध-मोक्षका कर्ता नहीं है। तो भी साधनाकी पर्याय तो उसे चालू है।
इसलये आचार्यदेव ऐसा कहते हैं, परिणत, परिणत अर्थात जीवका एक स्वभाव परिणामी भी है और अपरिणामी भी है। दोनों वस्तु स्वभावको आचार्यदेव साबित करते हैं। जो अपरिणामी है उसे परिणतवाले जीवने ही जाना है। और उसने ही साधनाकी पर्याय शुरू की है। वास्तविक रूप-से परिणत और अपरिणतके बीच जो साधक जीव है वही उसे बराबर जानता है। और द्रव्यदृष्टिमें तो मति-श्रुत ज्ञानके भेद नहीं है, या उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक आदिके भेद भी उसमें नहीं है। द्रव्यदृष्टि तो ऐसी अखण्ड अभेद है। फिर भी वह अखण्डको ग्रहण करे तो भी भेद उसमें होते हैं। उस भेदको ज्ञान जानता है। भेद और अभेद साथमें रहते हैं। फिर भी द्रव्य अपेक्षा-से वस्तु अखण्ड और गुण अपेक्षा-से उसमें भेद, पर्याय अपेक्षा-से भेद (है)। वह दोनों अपेक्षाएँ भिन्न- भिन्न हैं।
परिणामी, अपरिणामी विरुद्ध होने पर भी दोनों साथमें रहते हैं। और उन दोनोंकी अपेक्षाएँ अलग-अलग है। मुक्तिके मार्गमें वह दोनों साथमें ही होते हैं। अपरिणामी पर जोर और उस पर उस जातकी दृष्टि स्थापित की है तो भी साधना भी वैसे ही होते हैं। साधनाका जो परिणामीपना है वह भी अपरिणामी तरफकी मुख्यता-से ही परिणामी साधना होती है। ऐसा उसका सम्बन्ध है। और ज्ञान उसे बराबर ग्रहण करता है।
द्रव्य और पर्याय दोनों साथमें ही होते हैं। इसलिये आचार्यदेवने कहा है कि जो परिणतवाला जीव है, वही बन्ध-मोक्षको नहीं करता है। जो परिणामी है, जो साधनारूप परिणमा है, उसे द्रव्यदृष्टि प्रगट हुयी है। और वही ज्ञायक है। वह वास्तवमें ज्ञायक है और परिणामी जीव है, जिसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र है, वह परिणामीपना जिसे है, उसे द्रव्यदृष्टि साथमें ही रहती है। उसे द्रव्यदृष्टिपूर्वक साधनाकी पर्याय साथमें होती है। वह द्रव्यमें-से सर्व भेदको निकाल देता है तो भी, वह निकाल देता है उसीमें