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मुमुक्षुः- पर्यायका कारण पर्याय है, द्रव्य-गुण नहीं। इस कथनका आशय क्या समझना?
समाधानः- पर्यायका कारण पर्याय है और द्रव्य-गुण नहीं है। द्रव्य जैसे अनादिअनन्त स्वतःसिद्ध है, जैसे द्रव्य अनादिअनन्त स्वतः है, जगतके अन्दर जो वस्तु है वह स्वतःसिद्ध है, ऐसे द्रव्य-गुण स्वतःसिद्ध है। वैसे पर्याय है वह भी स्वतःसिद्ध है। वह किसीसे बनायी गयी, किसीके द्वारा उत्पन्न नहीं की गयी है। जो द्रव्यमें पर्याय है वह स्वतःसिद्ध है। द्रव्यके कारण पर्याय है, ऐसा नहीं। पर्याय स्वतःसिद्ध है।
अकारण पारिणामिक द्रव्य है। जैसे द्रव्य स्वतःसिद्ध है, वैसे पर्याय भी स्वतःसिद्ध है। उस पर्यायको परिणमनेमें आसपासकी पर्यायका कारण लागू पडे, इसलिये वह प्रगट होती है, ऐसा नहीं है। वस्तुस्थिति-से वह पर्याय स्वतःसिद्ध है। इसलिये पर्यायका कारण पर्याय कहनेमें आता है।
पर्याय है वह स्वतःसिद्ध है। जैसे द्रव्य-गुण स्वतःसिद्ध है, वैसे पर्याय स्वतःसिद्ध है। परन्तु उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि कोई द्रव्य पर्याय रहित है और पर्यायको कोई द्रव्यका आश्रय नहीं है, और पर्याय निराधार होती है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। परन्तु पर्याय है वह स्वतःसिद्ध है। वह स्वतःसिद्ध परिणमती है, वह अकारण है। जैसे द्रव्य-गुण अकारण है, वैसे पर्याय भी स्वतःसिद्ध अकारण है। ऐसा उसका अर्थ है। लेकिन पर्याय निराधार है, द्रव्य बिलकूल कूटस्थ है, द्रव्यमें कोई परिणाम नहीं है और पर्याय कोई द्रव्य रहित है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।
उसका स्वतःसिद्धपना और वह स्वयं स्वतंत्र है, उसके सर्व कारक स्वतंत्र, वह स्वतंत्र परिणमता है, ऐसा उसका समझनेका अर्थ है। पर्याय भी एक वस्तु अकारण है, ऐसा कहना है। परन्तु जो द्रव्यदृष्टि करे, उस द्रव्यदृष्टिके अन्दर द्रव्य जैसे स्वतःसिद्ध है, वैसे पर्याय स्वतःसिद्ध है। तो भी द्रव्यदृष्टिमें वह पर्याय आती नहीं है। द्रव्यदृष्टिमें पर्याय नहीं आती है। अर्थात पर्याय द्रव्यदृष्टिके विषयमें नहीं आती। इसलिये पर्याय द्रव्य- से एकदम भिन्न हो गयी और निराधार है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। तो भी पर्याय परिणमती है, जैसा द्रव्य हो उस जातकी पर्याय परिणमती है। जड द्रव्य हो और चेतनकी