पुरुषार्थ उत्पन्न हो तो सब छोड देते हैं। अंतरमें-से छूट जाता है, मुनि बन जाते हैं। फिर तो क्षण-क्षणमें आत्मामें स्वरूपमें लीन रहते हैं। क्षण-क्षणमें बाहर आये, अन्दर जाय ऐसी अंतर्मुहूर्तकी दशा हो जाती है।
परन्तु गृहस्थाश्रममें है इसलिये उसे उस जातका राग पुरुषार्थकी मन्दताके कारण छूटा नहीं है। अंतरमें-से छूट गया है कि ये विभाव मुझे किसी भी प्रकार-से आदरणीय नहीं है। ऊँचे-से ऊँचा शुभभाव भी मेरा स्वरूप नहीं है। उससे भी भिन्न रहते हैं। परन्तु वे राजके राग-से छूटे नहीं है। इसलिये उसमें खडे रहते हैं। वे छोडना चाहे, पुरुषार्थ करे तो क्षणमें छूट जाय ऐसा है।
कुछ राजा लडाईमें होते हैं और ऐसा होता है कि ये क्या? लडाईमें खडे हो, वहीं वैराग्य आता है, वहीं मुनि बन जाते हैं। ऐसी भी कोई राजा होते हैं। शास्त्रमें दृष्टान्त आता है। लडाई करते हो, वैराग्य आता है। हार-जीत ये सब क्या है? वहाँ लडाईमें ही लोंच करके मुनि बन जाते हैं, सब छोड देते हैं। ऐसा भी पुरुषार्थ उत्पन्न होता है। और किसीका ऐसा पुरुषार्थ उत्पन्न नहीं होता है, इसलिये लडाईमें, राजकी व्यवस्थामें सबमें जुडते हैं।
सम्यग्दृष्टिकी अंतरकी गति कुछ अलग होती है, बाहरकी अलग होती है। हाथीके दिखानेके दाँत अलग और अंतरके अलग होते हैं। वैसे उसकी अंतरकी परिणति एकदम न्यारी होती है। परन्तु बाहर ऐसे सब कार्यमें जुडता है। इसलिये परीक्षा करनी मुश्किल है। लडाईमें खडे हो और उसकी परीक्षा करनी, गृहस्थाश्रममें खडे हो उसकी परीक्ष करनी बहुत मुश्किल है। परन्तु वह अंतर-से कैसे न्यारे हैं, वह उनका परिचय हो तो ख्यालमें आये ऐसा है।
मुमुक्षुः- तभी उसकी ज्ञानधारा चालू ही होती है? और कर्मधारा चलती है?
समाधानः- कर्मधारा भिन्न, ज्ञानधारा भिन्न। दोनों भेदज्ञानकी धारा वर्तती है। ये शरीर भिन्न, उसके हथियार भिन्न, राग आवे वह भिन्न। सबसे भिन्न धारा वर्तती है। प्रतिक्षण धारा वर्तती है। वह सब कार्य उसके न्यायपूर्वक होते हैं। कोई अन्यायमें नहीं जुडते। मर्यादित होते हैं। परन्तु उसमें वे खडे होते हैं, लडाईके कायामें।
पहलेके राजा, चक्रवर्ती, भरत चक्रवर्ती, रामचन्द्रजी सब लडाईके कायामें खडे थे। वैराग्य आया तब मुनि बनकर चल दिये। भरत चक्रवर्ती तो अरीसा भुवनमें एकदम वैराग्यको प्राप्त हुए हैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेवकी एक टेपमें सुना कि ज्ञानमें ऐसी ताकत है कि भूत, भविष्य और वर्तमान सब पर्यायोंको जान सके। ऐसा भगवानके लिये ही है?
समाधानः- भगवानको प्रत्यक्ष ज्ञान है, इसलिये तीनों कालका प्रत्यक्ष जानते हैं।