Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२९२ और जो मति-श्रुतज्ञानी है वह प्रत्यक्ष नहीं जानता। इसलिये भूत, वर्तमान, भविष्यका प्रत्यक्ष नहीं जानता। वह भगवानके लिये है-भूत, वर्तमान, भावि। सम्यग्दृष्टि हो अथवा मति-श्रुतज्ञानी हो, वह भी थोडा जान सकता है। उसे भूतका अनन्त, भविष्यका अनन्त और वर्तमान वह सब अनन्त कालका नहीं जानता। किसीको ऐसा ज्ञान प्रगट हो तो मर्यादित ज्ञान जान सकता है।

बचपन-से बडा हुआ तो बचपनका हो उतना याद कर सके। भविष्यमें ऐसा होनेवाला है, ऐसा अनुमान प्रमाण-से जान सकता है। ऐसे भूत, वर्तमान, भविष्यको जाने। वर्तमानका जान सके, ऐसे जान सकता है। परन्तु केवलज्ञानी तो प्रत्यक्ष ऐसा ही होगा, ऐसा निश्चित जान सकते हैं। बाकी मति-श्रुत जिसे है, वह बचपन-से अब तक बडा हुआ, बचपनमें क्या बना वह सब जानता है, जो उसकी स्मरण शक्ति हो उस अनुसार। और अनुमान-से भविष्यमें ऐसा होगा, ऐसा अनुमान-से जानता है। कितनोंको ऐसा ज्ञान होता है कि भविष्यमें ऐसा होनेवाला है। ऐसा भी किसीको होता है कि थोडे समय बाद ऐसा होनेवाला है। ऐसा ज्ञान उसका सच्चा भी हो। ऐसा भी किसीको होता है। परन्तु वह सब मर्यादित होता है और परोक्ष होता है। केवलज्ञानीको प्रत्यक्ष होता है।

केवलज्ञानी तो जहाँ वीतराग दशा हुयी तो उसका ज्ञान निर्मल हो जाता है। भूतका अनन्त और भविष्यका अनन्त काल पर्यंतका अनन्त द्रव्योंका, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय, चैतन्य, जड, जगतमें जितनी वस्तु है, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय, समय-समयमें क्या परिणमन चल रहा है, वह सब एक समयमें केवलज्ञानी जानते हैं। अपना जानते हैं। स्वयं भूतकालमें कैसे परिणमे? वर्तमानमें कैसे परिणमते हैं, भविष्यमें क्या परिणति होनेवाली है? अपने द्रव्यकी। अनन्त गुण और पर्याय कैसे परिणमेंगे, ऐसा भविष्यमका अपना जाने। और अन्य अनन्त द्रव्य। यह जीव इतने समय बाद मोक्ष जायगा। नर्कका, स्वर्गका सब जीवोंके भाव, उसके भव, अनन्त-अनन्त कालका केवलज्ञानी जानते हैं। उन्हें ऐसा प्रत्यक्ष ज्ञान है। इच्छा नहीं करते हैं, इच्छा बिना जानते हैं। ऐसा उनका स्वपरप्रकाशक ज्ञान है।

मुमुक्षुः- उस ज्ञानका माहात्म्य बताईये।

समाधानः- ज्ञानकी ऐसी महिमा और ज्ञानका ऐसा स्वभाव है। मात्र महिमा नहीं बतानी है, परन्तु उसका स्वभाव ही ऐसा है। उसका नाम कहें कि उसमें मर्यादा नहीं होती। ज्ञानस्वभाव आत्माका है, उसकी मर्यादा नहीं है कि इतना ही जाने और उतना न जाने। वह जब निर्मल हो, तब पूर्ण जाने। अनन्त द्रव्य, अनन्त गुण, अनन्त पर्याय, अनन्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सब अनन्त जाने। उसका नाम ज्ञान कहनेमें आता है।