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वस्तुका स्वभाव जिसमें ज्ञान है, उसमें नहीं जानना ऐसा नहीं आता कि इतना ही जाने और इतना न जाने। पूर्ण जाने। अपना पूर्ण, दूसरेका, सबका जाने। परन्तु वीतराग दशा-से जानते हैं। अज्ञानदशामें तो ऐसा थोडा अनुमान-से जाने। मति-श्रुतज्ञानी स्वानुभूतिमें जाने। बाकी परोक्ष जाने, परन्तु वह थोडे कालका जानता है। अवधिज्ञानी अमुक प्रत्यक्ष जानता है, मनःपर्ययज्ञानी अमुक प्रत्यक्ष जानता है, परन्तु केवलज्ञानी तो पूर्ण जानते हैं। ऐसा ज्ञानका स्वभाव ही है। ज्ञानको मर्यादा नहीं होती।
आत्मा ज्ञानस्वभावी है। तो उसमें नहीं जानना ऐसा आता ही नहीं। पूर्ण जाने। उसमें ऐसी मर्यादा नहीं बँध सकती कि इतना जाने और उतना न जाने। पूर्ण जाने। स्वको जाने, परको जाने। परन्तु इच्छा बिना। उसमें एकत्वबुद्धि किया बिना जानता है।
समाधानः- .. यथार्थ भावना भावे, वह भावना उसकी फलवान होकर ही छूटकारा हो। यदि वह भावना अंतर-से उत्पन्न हुयी भावना हो कि मुझे आत्मा ही चाहिये। ऐसी भावना यदि हुयी और चैतन्यकी परिणति प्रगट न हो तो जगतको शून्य होना पडे। अर्थात भावना फलती ही है। तो द्रव्यका स्वभाव नाश हो जाय अथवा द्रव्यका नाश हो जाय। जगतको शून्य होना पडे। द्रव्यका नाश हो अर्थात जगतको शून्य होना पडे।
जो भावना अंतर-से प्रगट हुयी हो, जो भावना अंतरमें-से प्रगट हो, वह भावना अपनी परिणतिको लाये बिना रहती ही नहीं। यदि परिणति न आवे तो उस द्रव्यका नाश हो जाय। जो द्रव्य स्वयं अन्दर-से परिणतिको इच्छता है, जो उसे चाहिये, वह अंतर-से न आये तो जगतको शून्य होना पडे अर्थात द्रव्यका नाश हो जाय। अपने द्रव्यका नाश हो, अपनी भावना सफल न हो, किसीकी न हो, इसलिये जगतको शून्य होना पडे।
अपनी भावना सफल नहीं होती है तो अपने द्रव्यका नाश होता है। वैसे किसीकी भावना सफल नहीं हो तो जगतको शून्य होना पडे। इसलिये स्वयंकी भावना अंतर- से उत्पन्न हुयी हो, वह अंतर-से प्रगट होकर ही छूटकारा है। यदि स्वयंको अन्दर- से आत्मा प्रगट होनेकी इच्छा हो, अंतर-से, तो वह अन्दर प्रगट हो ही। ऐसा नियम है। जो अंतरकी उत्पन्न हुयी भावना हो, वह भावना सफल हुए बिना रहती ही नहीं।
शुभ-अशुभ सब भावनाओंका फल आता है। ऐसे चैतन्य तरफकी भावना अंतरमें- से हुयी, वह भावना अंतर-से हुयी, उस रूप द्रव्यको परिणमना ही पडे। यदि द्रव्य परिणमे नहीं तो जगतको शून्य होना पडे, द्रव्यका नाश हो। द्रव्यका नाश होता ही नहीं। इसलिये द्रव्य उस रूप परिणति किये बिना रहता ही नहीं।