Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1874 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-६)

२९४

मुमुक्षुः- अंतरकी भावना कैसे उत्पन्न हो?

समाधानः- उसे उत्पन्न करनेके लिये स्वयंको उतनी लगन हो, जरूरत लगे कि बस, कोई वस्तुमें उसे रस नहीं है, एक चैतन्य तरफका रस लगे। चैतन्यमें अन्दर अपूर्वता लगे। ऐसी अपूर्वता लगे। उसके बिना स्वयंको चले ही नहीं। चैतन्यकी परिणतिके बिना कैसे चले? ऐसा यदि अंतरमें-से हो तो अंतरमें-से परिणति प्रगट हुए बिना रहे ही नहीं।

समाधानः- .. जो मार्ग बताया, उस मार्गके बिना अंतरमें कहीं संतोष हो सके ऐसा नहीं है। ध्यान करे तो समझ बिनाका ध्यान (करे तो) अन्दर-से कुछ प्रगट नहीं होता। ज्ञानपूर्वकका ध्यान हो तो वह सच्चा ध्यान हो, अपना स्वभाव पहिचानकर। श्रीमद कहते हैं न, तरंगरूप हो जाता है। ज्ञान बिनाका ध्यान तो।

जो जान रहा है वह स्वयं ही है। स्वयं अपनेको जान नहीं सकता है। विभावमें जो सबको जाननेवाला है, उस जाननेवालेका अस्तित्व ग्रहण करना। जाननेवालेका असाधारण गुण ज्ञात होता है। बाकी अनन्त अनुपम शक्तियों-से भरा (है)। परन्तु ज्ञानस्वभाव उसका ऐसा असाधारण है कि वह ग्रहण हो सके ऐसा है। परन्तु स्वयंकी उतनी तैयारी हो तो वह ग्रहण कर सकता है। परन्तु वह जबतक न हो तबतक उसकी अपूर्वता लगे और उस तरफ परिणति जाय तो भी अच्छा है। उसकी भावना हो तो भी।

मुमुक्षुः- ऐसा होता है कि ऐसा कैसा अनुभव? ऐसा कैसा आनन्द? क्या होता है? उस वक्त अपनेको क्या दिखाई देता है? ऐसा होता है कि जाननेवालेको जानना है, वह सब बात बराबर। तो फिर उसमें आनन्द आता है तो कैसा आनन्द है? उसका क्या स्वरूप है?

समाधानः- जबतक विकल्पमें खडा है, तबतक आनन्द प्रगट नहीं होता। विकल्प- से भिन्न पडे तो प्रगट होता है। परन्तु पहले भेदज्ञान हो तो विकल्प-से भिन्न पडे। और वह भेदज्ञान भी यथार्थ परिणतियुक्त होना चाहिये। पहले तो अभ्यासरूप होता है, फिर उसकी परिणति प्रगट होती है। विकल्पमें खडा है तबतक आनन्द होता नहीं। उसकी श्रद्धा करे, अपूर्वता करे तो हो। ऐसा पहले हो, बादमें हो। पहले तो यथार्थ प्रतीत करे कि आत्मामें आनन्द है। शास्त्रमें आता है, तुझ-से न हो सके तो श्रद्धा तो करना।

समाधानः- .. शाश्वत मन्दिर है। शाश्वत रत्नके मन्दिर और शाश्वत प्रतिमाएँ पाँचसौ- पाँचसौ धनुषकी। जैसे समवसरणमें भगवान बैठे हों, वैसे रत्नकी प्रतिमाएँ। नासाग्र दृष्टि है। एक दिव्यध्वनि नहीं है, बाकी जैसे भगवान हों, वैसा पद्मासन और ऐसे पाँचसौ धनुषकी, ऐसी १०८ प्रतिमाएँ। ५२ जिनालय है। वह पूरा द्वीप मानों भगवानके मन्दरोंका