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ही हो ऐसा द्वीप है।
मुमुक्षुः- ऐसी कुदरती रचना होती है?
समाधानः- कुदरती रचना। ये सब पुदगलकी रचना भगवानरूप ही परिणमित हो गयी है। वहाँ सब भगवान ही हैं।
मुमुक्षुः- विहरमान तीर्थंकर?
समाधानः- नहीं, तीर्थंकर नहीं, प्रतिमाएँ हैं। (तीर्थंकर) तो विदेहक्षेत्रमें हैैं।
मुमुक्षुः- विहरमान तीर्थंकरकी प्रतिमाएँ या (दूसरी)?
समाधानः- कोई विहरमानकी या चौबीस तीर्थंकरकी प्रतिमाएँ ऐसा कुछ नहीं, बस, भगवान ही। नाम नहीं। जैसे भगवान समवसरणमें बैठे हों, वैसे भगवान। समवसरणमें बैठे होें वैसे। कौन-से भगवान ऐसा कुछ नहीं, तीर्थंकर भगवान। चौबीस भगवान या बीस विहरमान भगवान, ऐसा नहीं। तीर्थंकर भगवान। पद्मासनमें (बैठे हों), अशोकवृक्ष होता है, सिंहासन होता है, समवसरण जैसी रचना होती है। नाम नहीं है। किसीकी प्रतिष्ठा नहीं की है, कुदरती है। कुदरती, पुदगलके परमाणु जैसे पहाड आदि कुदरती होते हैं, दुनियामें जैसे पहाड आदि होता है, वैसे कुदरती प्रतिमाएँ, रत्नमय प्रतिमाएँ होती हैं। किसीके द्वारा निर्मित नहीं होती।
मुमुक्षुः- कैलास पर्वत पर भी है न?
समाधानः- भरत चक्रवर्तीने वहाँ प्रतिओंकी स्थापना की है। भूतकालकी चौबीसी, वर्तमान चौबीसी और भविष्यकी चौबीसी, ऐसे बहत्तर बिंबकी स्थापना भरत चक्रवर्तीने कैलास पर्वत पर की है। कैलास पर्वत अभी किसीको हाथ नहीं लगता है। वह रत्नमय प्रतिमाएँ भरत चक्रवर्तीने करवायी हैं।
समाधानः- ..विभावभाव-से अपना स्वभाव भिन्न है। उसका अस्तित्व ग्रहण करके उस रूप अंतरमें-से परिणति करे तो होता है, तो स्वानुभूति होती है। जो भाव-विकल्प आये उससे भिन्न आत्मा ज्ञायक है, उसे पहचानना।
... केवलज्ञान हो तब वह क्षय होता है। बाकी पहले भेदज्ञान है। उसका भेदज्ञान करना। तो विकल्प छूटकर अन्दर समा जाय तो स्वानुभूति होती है। तो स्वानुभूति होती है। .. तो विकल्प छूट जाय।