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महाविदेह क्षेत्रमें गये हैं, इतना मालूम था। ... दिगंबरमें क्या अंतर है, वह सब विचारमें थी। श्वेतांबरमें कहाँ भूल है, दिगंबर क्या कहता है, छः द्रव्य है, उसमें ये कालको औपचारिक द्रव्य कहते हैं, दिगंबरमें छः द्रव्य आते हैं, वह सब विचार चलता था। शुरूआतमें तो वह सब न्यायके विचार चलते थे। अभी तो श्वेतांबर-दिगंबर (का अंतर विचार चलता था)। गुरुदेवने अभी-अभी परिवर्तन किया था। उसमें गुरुदेव क्या कहते हैं और किस प्रकारसे यह सब फर्क कहते हैं? वस्त्रधारीको मुक्ति नहीं होती, ऐसा सब गुरुदेव कहते हैं, वह किस प्रकारसे है? वह सब गुरुदेव स्पष्ट करके कहते थे तब समझमें आता था। वह सब शुरूआत थी। श्वेतांबर-दिगंबरमें क्या फर्क है, मुनिदशामें वस्त्र हो तो केवलज्ञान क्यों नहीं होता? ऐसी सब उलझन शुरूआतमें कितनी होती है। वह सब चलता था, यह कुछ था भी नहीं।
... ऐसे सब दृष्टान्त आते थे। ऐसे सब दृष्टान्त गुरुदेव देते थे। अर्थात सब शुरूआत थी। श्वेतांबर-दिगंबरका गुरुदेवने स्वयंने नक्की किया था, वह सब बाहर आनेकी शुरूआत थी। यह सब बाहर नहीं कहते थे। समयसार पढते थे, राजकोटमें, लेकिन श्वेतांबरके वस्त्र और यह दिगंबर, ऐसा कुछ नहीं बोलते थे।
... सबके बीच वांचन करे, बस। गुरुदेवने अभी-अभी संप्रदाय छोडा था। गुरुदेवको कोई बात करनी हो तो संप्रदायका भय लगे। ऐसा था। इसलिये समय खोजकर ... लेकिन उसमें कोई महेमान आ जाये। सब तरहकी दिक्कत थी। ... कभी-कभी बाहर भी बैठते थे।
मुमुक्षुः- उस ओर छोटा कमरा है, खिडकी है वहाँ? समाधानः- वहाँ भी कभी-कभी बैठते थे। कभी-कभी उस कमरेमें बैठे हो। सामने दिखाई देता है न? दरवाजेमें बैठे हो तो सामने दिखाई दे। होलका बरामदा और कमरेके दरवाजा, ऐसे। कमरा होता है न? कमरेका दरवाजा होता है न, सब दिखाई देता था। गुरुदेव प्रवचन देते हैं, वहाँ भी बैठे हो। पहले तो लिखा होता है। ...