Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

३०२ मुश्किल है। हो जाय फिर उसे चालू रखनी मुश्किल है।

... दिखता नहीं, पर्यायमें देखे तो दिखता है। उन दोनोंका मेल करके उस प्रकारका पुरुषार्थ करना। उस तरह पुरुषार्थकी धारा प्रगट करनी। मार्ग निकालना वह अपने हाथकी बात है। .. पुरुषार्थ-से होता है।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- परिपूर्ण हूँ। परन्तु विभाव अनादिका है, उसका बराबर ज्ञान करके आगे जाय तो कहीं भूल नहीं पडती। उसका यथार्थ ज्ञान करना है। स्वयं जानता है कि ये विभाव है। विभावका ज्ञान रहना चाहिये कि ये एक विकल्पकी धारा भले ही मुझमें नहीं है, परन्तु ये सब विकल्प खडे हैं। घरका, बाहरका, सब विकल्प खडे हैं। विकल्प है, .. उसमें-से विकल्प उत्पन्न होते हैं। इसलिये विकल्प तो है, विभाव तो खडा है। इसलिये उसका उसे ज्ञान वर्तता है। ... इसलिये ज्ञायककी उग्रता हो तो वह छूटे।

पहले तो श्रद्धा और प्रतीतमें आये। स्वानुभूति तो हो, परन्तु उसके बाद तो कितनी उग्रता हो तब मूलमेंसे छूटता है। केवलज्ञान, मुनिदशा वह तो अंतर्मुहूर्तका उपयोग कि जो एक समयका उपयोग हो तो एकदम हो। अभी तो वह स्वानुभूति तक पहुँचता है। भेदज्ञानकी धारा प्रगट करनी है।

मुमुक्षुः- मेरेमें रागका उदय ही नहीं होता है, ज्ञानका उदय होता है। समाधानः- ज्ञानका उदय होता है, बराबर है। रागका उदय है ही नहीं वह द्रव्यदृष्टि-से बराबर है। पर्यायमें है उसका ज्ञान करना। उसकी महिमा आये वह बराबर है कि रागका उदय नहीं है, ज्ञानका उदय हो रहा है। उसकी महिमा आये, उस जातकी भावना आये, उस जातका वैराग्य हो, परन्तु उसका ज्ञान तो होना चाहिये। तो पुरुषार्थ आगे बढे। नहीं तो पुरुषार्थ आगे नहीं बढे। मुझमें कुछ है ही नहीं, ऐसी महिमा करता रहे, पुरुषार्थ आगे नहीं बढता। ऐसा ज्ञान करे तो पुरुषार्थ आगे नहीं बढता। अभी इतना बाकी है, उसे ज्ञानमें न रखे तो पुरुषार्थ आगे नहीं बढ सकता। ... मेरेमें कुछ नहीं है, मैं तो ज्ञायक हूँ। कुछ है ही नहीं तो पुरुषार्थ कैसे आगे बढे?

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!