પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રીએ માર્ગ બતાવ્યો તે માર્ગ વિચારથી નક્કી કરી શકાય છે તે વિષે.... 0 Play पूज्य गुरुदेवश्रीए मार्ग बताव्यो ते मार्ग विचारथी नक्की करी शकाय छे ते विषे.... 0 Play
આ આમ જ છે તેમ નક્કી થઈ ગયું છે પણ અનુભવમાં કેમ નથી આવતું ? 0:40 Play आ आम ज छे तेम नक्की थई गयुं छे पण अनुभवमां केम नथी आवतुं ? 0:40 Play
ભેદજ્ઞાનની કોઈ રીત ખરી કે નહીં? 1:40 Play भेदज्ञाननी कोई रीत खरी के नहीं? 1:40 Play
યાદ રાખવા જેવું શું છે? 2:55 Play याद राखवा जेवुं शुं छे? 2:55 Play
મેરુ પર્વત શું રત્નમય છે? ત્યાં શું સમ્યગ્દ્રષ્ટિ દેવ જ જાય? (મેરુ પર્વતનું વર્ણન) 4:00 Play मेरु पर्वत शुं रत्नमय छे? त्यां शुं सम्यग्द्रष्टि देव ज जाय? (मेरु पर्वतनुं वर्णन) 4:00 Play
આત્માને જ્ઞાન-લક્ષણથી ઓળખી જ્ઞાયકને ગ્રહણ કરવો તે એક જ રસ્તો છે તે વિષે... 8:15 Play आत्माने ज्ञान-लक्षणथी ओळखी ज्ञायकने ग्रहण करवो ते एक ज रस्तो छे ते विषे... 8:15 Play
વચનામૃતમાં ‘જ્ઞાયક....જ્ઞાયક’ શબ્દ ઠેર ઠેર આવે છે તો શું જ્ઞાયકના આશ્રયે બધું પ્રગટ થવાનું છે? કે બીજું કાંઈ કરવાનું છે? 10:05 Play वचनामृतमां ‘ज्ञायक....ज्ञायक’ शब्द ठेर ठेर आवे छे तो शुं ज्ञायकना आश्रये बधुं प्रगट थवानुं छे? के बीजुं कांई करवानुं छे? 10:05 Play
આપને જ્યારે અનુભૂતિ થઈ તે પહેલાં પંડિતજી (હિંમતભાઈને)ને કહેતા ‘‘આટલું બાકી છે, આટલું બાકી છે’’ તે શું જ્ઞાયકના બળે કહેતા હતા? 11:36 Play आपने ज्यारे अनुभूति थई ते पहेलां पंडितजी (हिंमतभाईने)ने कहेता ‘‘आटलुं बाकी छे, आटलुं बाकी छे’’ ते शुं ज्ञायकना बळे कहेता हता? 11:36 Play
નિશ્ચય-વ્યવહાર બંનેની સંધિ શું સાથે છે? જ્ઞાયકનું રટણ અને દેવ-ગુરુ-શાસ્ત્રનું બહુમાન વગેરે શું સાથે છે? 12:35 Play निश्चय-व्यवहार बंनेनी संधि शुं साथे छे? ज्ञायकनुं रटण अने देव-गुरु-शास्त्रनुं बहुमान वगेरे शुं साथे छे? 12:35 Play
જ્ઞાની ધર્માત્મા ભકિત આદિ કાર્યમાં જોડાતા દેખાય છે..... આપ કહો છો કે ‘જ્ઞાની બહારના કાર્યથી અલિપ્ત છે, અંદર જ્ઞાનીની જે પરિણતિ ચાલે છે તેને તું જો.’પણ અંદરમાં જોવાની દ્રષ્ટિ તો અમને મળી નથી તે દ્રષ્ટિ મેળવવા અમારે શું કરવું જોઈએ તે કૃપા કરી સમજાવશો. 13:35 Play ज्ञानी धर्मात्मा भकित आदि कार्यमां जोडाता देखाय छे..... आप कहो छो के ‘ज्ञानी बहारना कार्यथी अलिप्त छे, अंदर ज्ञानीनी जे परिणति चाले छे तेने तुं जो.’पण अंदरमां जोवानी द्रष्टि तो अमने मळी नथी ते द्रष्टि मेळववा अमारे शुं करवुं जोईए ते कृपा करी समजावशो. 13:35 Play
સામાન્ય ઉપર દ્રષ્ટિ અને ભેદજ્ઞાનમાં શો તફાવત છે? તે સમજાવશો 15:50 Play सामान्य उपर द्रष्टि अने भेदज्ञानमां शो तफावत छे? ते समजावशो 15:50 Play
समाधानः- .. वह ग्रहण करके तैयारी करे। गुरुदेव जो कहे वह बराबर है।ऐसा अर्पणताका भाव अन्दर आये और स्वयं विचारूपर्वक नक्की करे, वही मार्ग ग्रहण करने जैसा है। स्वयं अपनेआप मार्ग नहीं जान सकता है। गुरुदेवने बताया तो विचार करके नक्की करे और वह स्वयं नक्की कर सकता है। आत्मा स्वयं अनन्त शक्तिवान है। स्वयं नक्की करे इस मार्ग पर जा सकता है।
मुमुक्षुः- तो फिर उसे शंका ही न हो।
समाधानः- ... आगे नहीं जा सकता, मुख्य तो प्रतीत है।
मुमुक्षुः- यह ऐसा ही है, ऐसा नक्की तो हो गया, परन्तु अनुभवमें नहीं आता।
समाधानः- यह ऐसा ही है, वह भी अभी अन्दर-से स्वभाव-से नक्की हो कि यह ज्ञानस्वभाव ही है, ऐसी अंतरमें-से प्रतीति जब आवे तब अंतरकी परिणति प्रगट हो। अन्दर गहराई-से स्वभाव ग्रहण करके प्रतीत करे। विश्वास किया, गुरुदेवने कहा उस पर विश्वास किया, विचार किया, विचार-से नक्की किया। नक्की किया लेकिन अंतरमें जो स्वभाव ग्रहण करके नक्की करना चाहिये के यह आत्मा और यह विभाव, ऐसे नक्की करे, उस जातकी प्रतीति करे तो आगे बढा जाता है। अभी अन्दर गहराईमें नक्की करना बाकी रह जाता है। अन्दर गहराईमें सूक्ष्म उपयोग धीरा होकर नक्की करे। अंतरमें-से भेदज्ञान करना चाहिये वह बाकी रह जाता है।
मुमुक्षुः- भेदज्ञानकी कोई रीत है?
समाधानः- अंतर भेदज्ञानकी रीत, भेदज्ञान यानी भेदज्ञान स्वयं भिन्न पडता है। जो क्षण-क्षण एकत्वबुद्धि चल रही है, शरीरादि, विभावके साथ, सबके साथ एकत्वबुद्धि हो रही है, वह एकत्वबुद्धि अंतरमें ऊतरकर तोडे, ज्ञानस्वभावको ग्रहण करे तो एकत्वबुद्धि टूटे, तो भेदज्ञान हो। सबका एक ही उपाय है कि ज्ञायकको ग्रहण करे तो भेदज्ञान हो। ज्ञायकको ग्रहण करने-से सच्ची प्रतीत, ज्ञान सब ज्ञायकको ग्रहण करने-से हो। सबका एक ही उपाय है। चारों और अनेक मार्ग नहीं होते, मार्ग एक ही है। ज्ञायकको ग्रहण करना। फिर किसी भी प्रकार-से ज्ञायकको ग्रहण करना। विचार करके नक्की करे, शास्त्र-से, गुरुदेवके आशय-से सर्व प्रकार-से एक ज्ञायकको ग्रहण करना, एक ही मार्ग