Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 286.

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ट्रेक-२८६ (audio) (View topics)

समाधानः- .. वह ग्रहण करके तैयारी करे। गुरुदेव जो कहे वह बराबर है। ऐसा अर्पणताका भाव अन्दर आये और स्वयं विचारूपर्वक नक्की करे, वही मार्ग ग्रहण करने जैसा है। स्वयं अपनेआप मार्ग नहीं जान सकता है। गुरुदेवने बताया तो विचार करके नक्की करे और वह स्वयं नक्की कर सकता है। आत्मा स्वयं अनन्त शक्तिवान है। स्वयं नक्की करे इस मार्ग पर जा सकता है।

मुमुक्षुः- तो फिर उसे शंका ही न हो।

समाधानः- ... आगे नहीं जा सकता, मुख्य तो प्रतीत है।

मुमुक्षुः- यह ऐसा ही है, ऐसा नक्की तो हो गया, परन्तु अनुभवमें नहीं आता।

समाधानः- यह ऐसा ही है, वह भी अभी अन्दर-से स्वभाव-से नक्की हो कि यह ज्ञानस्वभाव ही है, ऐसी अंतरमें-से प्रतीति जब आवे तब अंतरकी परिणति प्रगट हो। अन्दर गहराई-से स्वभाव ग्रहण करके प्रतीत करे। विश्वास किया, गुरुदेवने कहा उस पर विश्वास किया, विचार किया, विचार-से नक्की किया। नक्की किया लेकिन अंतरमें जो स्वभाव ग्रहण करके नक्की करना चाहिये के यह आत्मा और यह विभाव, ऐसे नक्की करे, उस जातकी प्रतीति करे तो आगे बढा जाता है। अभी अन्दर गहराईमें नक्की करना बाकी रह जाता है। अन्दर गहराईमें सूक्ष्म उपयोग धीरा होकर नक्की करे। अंतरमें-से भेदज्ञान करना चाहिये वह बाकी रह जाता है।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानकी कोई रीत है?

समाधानः- अंतर भेदज्ञानकी रीत, भेदज्ञान यानी भेदज्ञान स्वयं भिन्न पडता है। जो क्षण-क्षण एकत्वबुद्धि चल रही है, शरीरादि, विभावके साथ, सबके साथ एकत्वबुद्धि हो रही है, वह एकत्वबुद्धि अंतरमें ऊतरकर तोडे, ज्ञानस्वभावको ग्रहण करे तो एकत्वबुद्धि टूटे, तो भेदज्ञान हो। सबका एक ही उपाय है कि ज्ञायकको ग्रहण करे तो भेदज्ञान हो। ज्ञायकको ग्रहण करने-से सच्ची प्रतीत, ज्ञान सब ज्ञायकको ग्रहण करने-से हो। सबका एक ही उपाय है। चारों और अनेक मार्ग नहीं होते, मार्ग एक ही है। ज्ञायकको ग्रहण करना। फिर किसी भी प्रकार-से ज्ञायकको ग्रहण करना। विचार करके नक्की करे, शास्त्र-से, गुरुदेवके आशय-से सर्व प्रकार-से एक ज्ञायकको ग्रहण करना, एक ही मार्ग