३०४ है, दूसरा कोई मार्ग नहीं है। ज्ञायकको ग्रहण करके अन्दर लीनता करे तो प्रगट होता है।
मुमुक्षुः- ज्ञायकको ग्रहण करना, एक ही उपाय।
समाधानः- एक ही उपाय है। ज्ञायकको स्वभावमें-से ग्रहण करे तो भेदज्ञान हो। मूल वस्तुको ग्रहण करनी।
मुमुक्षुः- इसमें याद रखने जितना कितना? याह रहता नहीं है..
समाधानः- ज्ञायकको याद रखना। ज्ञायक वस्तु... फिर विचार करनेके सब पहलू आये। अनन्त गुण है, अनन्त पर्याय है, द्रव्य-गुण-पर्याय सब विचार करनेके लिये सब सब पहलू है। उत्पाद-व्यय-ध्रुव, द्रव्य-गुण-पर्याय, साधक, साध्य ज्ञाता, ज्ञेय विचार करनेके लिये सब है। याद रखना एक ज्ञायक।
मुमुक्षुः- ध्येय।
समाधानः- ध्येय एक ज्ञायकका। विचार करनेके लिय सब पहलू। सब विचार करके नक्की करे। शास्त्रों-से, गुरुदेवके आश्रय-से विचार करके नक्की करनेके बहुत पहलू हैं। मूल तत्त्वका विचार करना। याद एक ज्ञायकको रखना।
मुमुक्षुः- मेरु पर्वतमें भी रत्नके हैं?
समाधानः- अंजनगिरी, दधिगिरी सब रत्के पहाड और रत्नकी प्रतिमाएँ हैं।
मुमुक्षुः- अंजनगिरी भी पूरा रत्नका पहाड?
समाधानः- हाँ, रत्नका। वह सब रत्नके पहाड हैं।
मुमुक्षुः- आप देवस्वरूपमें जाकर आये? या सम्यग्दृष्टि ही जा सकते हैं? कोई भी जा सकता है?
समाधानः- सब देव जा सकते हैं। देवलोकमें जाय, वहाँ-से नंदीश्वरमें सब देव (जा सकते हैं), इन्द्र तो जाते हैं, परन्तु इन्द्र सबको साथ लेकर जाता है। जाय, परन्तु सब बार भाव-से नहीं गया हो। अनन्त बार देवलोकमें गया है। ऋद्धि थी तो जाकर आ गया कि हम देवोंका जानेका नियम है इसलिये जाते हैं। उस प्रकार जाकर आया। भाव-से जाये उसकी बात अलग होती है। इन्द्र हमें आज्ञा करते हैं इसलिये हमें जाना पडे, ऐसा करके जाय। उत्सव करनेके लिये इन्द्र लेकर जाय तो इन्द्रोंके साथ जाय कि हमें आज्ञा है तो हम जाते हैं। भावना-से जाय उसकी बात अलग है। कोई देव भाव-से भी जाते हैं।
मनुष्य जा नहीं सकते। .. हम नहीं जा सकते, देव ही जा सकते हैं। पाँचसौ- पाँचसौ धनुषके भगवान जैसे समवसरणमें विराजते हों, ऐसे भगवान (होते हैं)। अंजनगिरी श्याम कलरके रत्नके पहाडे हैं। दधिगिरी सफेद है और रतिकर लाल है, ऐसा आता है। ऐसे रत्नके पहाड हैं।