Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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३०५

मुमुक्षुः- रतिकर, दधिगिरी, अंजगिरी सबमें पाँचसौ धनुषके होते हैं?

समाधानः- पहाड नहीं, प्रतिमाजी पाँचसौ धनुषके।

मुमुक्षुः- तीन पर्वतोंमें दधिगिरी, रतिकर और अंजनगिरी तीनोंमें पाँचसौ धनुषके?

समाधानः- ऐसा आता है। उसके माप अलग-अलग आते हैं। कोई जगह मध्यम है, कोई जगह .. है, कोई जगह पाँचसौ धनुषके हैं।

मुमुक्षुः- पाँच मेरुमें तो अस्सी प्रतिमाएँ है, ऐसा पहले सामान्यतया ख्यालमें था। फिर पूजा जब होने लगी तो तब ऐसा लगा कि एक-एक मेरुमें तो कितनी प्रतिमाएँ हैं! सब मिलाकर ३९२ होती है न?

समाधानः- मूल मेर पर्वतमें तो ऐसे है। एक मेरुमें चार-चार जिनालय हैं। ऐसा है। उसके बगलमें शाल्मलि वृक्ष और जम्बू वृक्ष है। उसके अगलबगलके जो पहाड और वृक्ष हैं, उसकी प्रतिमाएँ हैं वह सब। उसकी .. पर्वतोंकी निकली है। उसके पर मन्दिर हैं। उसके ऊपर तो एक-एकमें सोलह जिनालय है। मेरु पर्वतमें। फिर उसके बगलमें वृक्ष हैं। उसमें है। ऐसा तो आता है न? अगलबगलमें विजयार्ध और वैताल आदि सब अगलबगलमें हैं, उसके ऊपर मन्दिर है। उसका पूरा परिवार बगलके पहाडका है। मूल मेरुमें तो सोलह जिनालय है।

उसमें-से उसका कुछ भाग निकला है उसमें है। देव जा सकते हैं। मन्दिर पर और सब पर बहुत भाव था। पाँचसौ धनुषकी (प्रतिमा) है इसलिये पहाड तो उससे भी बडे होते हैं। ज्यादा ऊँचे होते हैं।

... शास्त्रमें आता है। वह सुवर्ण रत्नमिश्रित है। अमुक भाग रत्नका और अमुका सुवर्णका है। मेरु पर्वत पूरा वैसे है। सुवर्णका भाग और रत्नका भाग। मेरु पर्वत तो कितना ऊँचा है। यहाँ-से सुधर्म देवलोककी जो धजा है, पाण्डुक वनके मन्दिरकी, उसमें बालाग्र जितना ही अंतर है। बस, उतना ही अंतर है। पहला सुधर्म देवलोक है, वहाँ तक ऊँचा है। बीचमें एक बालाग्र जितना अंतर है। पाण्डुक वनमें आकर भगवानका जन्माभिषेक करते हैं। सुधर्म इन्द्र, शक्रेन्द्र, सब देव वहाँ आते हैं।

समाधानः- ... जितना ज्ञान है वही मैं हूँ। ज्ञान यानी उसमें पूरा ज्ञायक आ जाता है। जितना ज्ञान है, उतना ही मैं हूँ। ज्ञायकको ग्रहण करे और विकल्प-से भिन्न पडे, उसका भेदज्ञान करे, वह एक ही मार्ग है।

मैं शाश्वत द्रव्य हूँ, उस द्रव्य पर दृष्टि करे और विकल्प-से भिन्न पडे, वह एक ही मार्ग है। परन्तु उसके लिये उसे उतनी गहरी लगनी नहीं है, इसलिये वह ग्रहण नहीं करता है। मार्ग तो एक ही है और गुरुदेव वह बताते थे। मार्ग तो एक ही है कि आत्माको ज्ञानलक्षण-से पहिचानकर द्रव्यको ग्रहण करे कि यह द्रव्य है सो