Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

३१६

मुमुक्षुः- तो ही मर्यादामें आये।

समाधानः- तो ही मर्यादामें आये।

मुमुक्षुः- माताजी! अभी जो क्षयोपशम ऐसा भी हो सकता है कि क्षायिक लेकर ही बीचमें छूटे नहीं, ऐसा हो सकता है?

समाधानः- हाँ, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन ऐसा भी होता है।

मुमुक्षुः- आजके महामंगलकारी दिन, मंगलकारी सम्यकत्वके कारणरूप भेदज्ञानका स्वरूप ..

समाधानः- गुरुदेवने परम उपकार किया है। गुरुदेवने तो भेदज्ञानका स्वरूप, स्वानुभूतिका स्वरूप भरतक्षेत्रमें था नहीं। गुरुदेवने परम उपकार किया है। गुरुदेवने स्पष्ट इतना किया है कि कोई प्रश्न उत्पन्न हो और पुरुषार्थ करना स्वयंको बाकी रहता है। सूक्ष्म-सूक्ष्म करके, गहरा-गहरा अनेक रीत-से गुरुदेवने चारों ओर-से समझाया है।

स्वानुभूतिका मार्ग, भेदज्ञानका मार्ग गुरुदेवने स्पष्ट करके बताया है। मुमुक्षुकी अन्दर- से गहरी भावना हो कि मुझे आत्माकी ही करना है। आत्मामें सर्वस्व है, बाकी कहीं नहीं है। आत्मा ही महिमावंत है। जगतमें सर्वश्रेष्ठ हो तो आत्मा है। बाहरकी वस्तु कोई विशेष नहीं है। एक आत्मा सर्वोत्कृष्ट है, ऐसी जिसे भावना, महिमा, लगनी लगे तो भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करे।

अन्दर स्वयं गुरुके उपदेश-से और विचार करके नक्की करे। गुरुने बहुत समझाया है। तू भिन्न और ये शरीर भिन्न, विभावस्वभाव भी तेरा नहीं है। उससे भेदज्ञान कर। गुरुदेव बारंबार समझा रहे हैं। परन्तु स्वयं पुरुषार्थ करके अन्दर-से नक्की करे कि जो चैतन्यतत्त्व शाश्वत अनादिअनन्त है, जिसमें अनन्त काल गया, अनन्त जन्म-मरण किये तो भी वह द्रव्य ज्योंका त्यों शाश्वत है। उस शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करनेके लिये प्रयत्न करना। उसमें कोई गुणके भेद-से भेदवाला, वास्तविक रूप-से भेदवाला (नहीं है)। चैतन्य तत्त्व तो अखण्ड ही है।

छः द्रव्यमें एक जीवतत्त्वको ग्रहण करना। नौ तत्त्वमें भी एक जीवतत्त्वको ग्रहण करना। भावोंमें भी एक पारिणामिकभावस्वरूप आत्माको ग्रहण करना। आत्मा जो अखण्ड अभेद तत्त्व अनादिअनन्त सहज तत्त्व है, उसे ग्रहण करना। उसे ग्रहण करके उसका भेदज्ञान करके, ये शरीर, विभाव आदि सब स्वभाव मेरा नहीं है। मैं उससे भिन्न हूँ। ऐसे चैतन्यतत्त्वको ग्रहण करके बारंबार उसका पुरुषार्थ करे।

मैं एक, शुद्ध, सदा अरूपी, ज्ञानदृग हूँ यथार्थसे,
कुछ अन्य वो मेरा तनिक परमाणुमात्र नहीं अरे!।।३८।।

मैं एक शुद्ध स्वरूप आत्मा हूँ। मैं शुद्धात्मा ज्ञान-दर्शनसे भरा हुआ, ज्ञान-दर्शनसे