Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

१९० नित्य स्वभाव हो जाये ऐसा नहीं है, वह तो पर्यायमें होते हैं। कारण स्वयं है। स्वयंका स्वभाव नहीं है, परंतु कारण स्वयं है। लेकिन निमित्तकारण भी है। ... ऊपर है इसलिये निमित्तकारण है ही नहीं, ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- वह कुछ करता नहीं।

समाधानः- करता नहीं है, परंतु निमित्त है। एक क्षेत्रावगाहमें आकर सम्बन्ध होता है। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। स्वयं स्वभावरूप परिणमित हो तो वह कर्मका बन्धन स्वयं टूट जाता है, स्वयं छूट जाता है। ऐसा सम्बन्ध है। निमित्त न हो तो फिर यह बन्धन भी नहीं होता, शरीर भी नहीं होता, कर्म भी नहीं होते, कुछ नहीं होता। निमित्त है, लेकिन निमित्त स्वयं कुछ करता नहीं। लोहचुंबक हो तो सूई स्वयं (उसके पास आ जाती है)।

(निमित्त) है ही नहीं, ऐसा नहीं है। निमित्त यहाँ भले कुछ करता नहीं, लेकिन यदि हो ही नहीं तो वह द्रव्यका स्वभाव (हो जाये)। वैसे स्वभाव नहीं है, द्रव्यका स्वभाव नहीं है। उपादान है, अपनी पर्यायमे अशुद्ध उपादान स्वयंका है, लेकिन द्रव्यका मूल स्वभाव नहीं है। द्रव्यका मूल स्वभाव नहीं है, इसलिये द्रव्य पर दृष्टि करके कोई अपेक्षासे उसे परमें डाल दिया जाता है। और स्वयं पुरुषार्थकी ओर देखे तो स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दतासे होते हैं। इसलिये स्वयं दृष्टि पलटे तो पलट जाती है।

मुमुक्षुः- पुरुषार्थकी अपेक्षासे स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दतासे होते हैं।

समाधानः- हाँ, स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दतासे होते हैं। उसका वेदन स्वयंको है, इसलिये स्वयंके है, स्वयं करता है। बात यह समझनी, उसमेंसे द्रव्य और पर्यायका विवेक करके आगे जा सकता है, क्योंकि बीचवाली बात है, निमित्त करता नहीं, अपने स्वभावमें नहीं है और विभावपर्याय स्वयं उपादानसे होती है। वह बीचवाली स्वयं बराबर समझे तो मूल द्रव्यमें तो नहीं है, वह पर्यायमें होते हैं। पर्यायका उपादान कारण, अशुद्ध उपादान स्वयंका है। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है।

मुमुक्षुः- लक्ष्य करनेके लिये दो विषय है, एक परपदार्थ और एक अपना स्वभाव है। कार्य करनेकी जिम्मेदारी अथवा कार्य करना अपने हाथमें है।

समाधानः- अपने हाथमें है। कार्य किस ओरका करना वह अपने हाथमें है। वह जबरजस्ती निमित्त नहीं करवाता। दृष्टि परकी ओर करे तो वहाँ राग होता है, दूसरेकी ओर दृष्टि करे तो, फिर बन्धन होता है। कहाँ करनी, पुरुषार्थकी गति कहाँ करनी वह अपने हाथमें है। निमित्त कुछ करता नहीं।

मुमुक्षुः- स्वयं कहनेसे त्रिकाली द्रव्य ही स्वयं है ऐसा नहीं है, लेकिन पर्यायका कारणपना भी स्वयंका है।