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समाधानः- वह स्वयंका ही है। द्रव्य स्वयं एक ओर रह गया और पर्याय करता है इसलिये पर्यायका वेदन पर्यायमें है। उसका वेदन करनेवाला कोई अन्य और द्रव्य शुद्ध रह गया वह कोई अन्य, ऐसा नहीं है। द्रव्य शुद्ध है तो पर्यायका वेदन (किसे होता है)? एक लो तो रागका, द्वेषका वेदन तो स्वयंको होता है। लेकिन मूल वस्तुमें नहीं है।
जैसे स्फटिक स्वभावसे श्वेत है, उसका श्वेतपना उसके अंतःतत्त्वमेंसे मूलमेंसे जाये ऐसा नहीं है। लेकिन ऊपर देखो तो लाल, काला ऊपर दिखाई देता है। वैसे द्रव्यके मूल अंतःतत्त्वमें शुद्धता है, लेकिन ऊपर राग-द्वेषकी कालिमा है उसका वेदन स्वयंको होता है। स्फटिक स्वयं परिणमता है। लेकिन वह ऐसे परिणमता है, उसकी मूल शुद्धता- स्फटिककी निर्मलता है उसे छोडकर नहीं परिणमता। लाल, काले रंगरूप स्वयं परिणमता है, लेकिन उसका मूल (तत्त्व) छूटता नहीं। ऐसे परिणमता है।
उसी प्रकार द्रव्य परिणमता है, उपादान उसका स्वयंका है, लेकिन वह राग-द्वेषरूप ऊपर-ऊपर परिणमता है, उसकी मूल शुद्धता है वह चली नहीं जाती। लाल, काला होनेमें उसे निमित्त बाहरका होता है। फूल आदिका निमित्त (होता है)। लेकिन वह निमित्त उसे कुछ करता नहीं। उसमें स्वयं वैसा प्रतिभास होता है। स्फटिक परिणमता है स्वयं, लेकिन लाल, काला यदि नहीं हो तो (प्रतिबिंब नहीं उठता)। वैसा निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध है।
वैसे आत्मामेें वह निमित्त है, निमित्त कुछ करता नहीं। परिणमता है स्वयं। लेकिन द्रव्यमेंसे मूल शुद्धताको छोडकर नहीं परिणमता। फिर भी निमित्त है सही, निमित्त कुछ करता नहीं इसलिये निमित्त है ही ऐसा नहीं है। जैसे स्फटिकमें ऐसा कहा जाये कि निमित्त कुछ करता नहीं तो निमित्त बिना प्रयोजन है। बिना प्रयोजन नहीं है। निमित्त नहीं हो तो स्फटिक सफेद ही होता है। ऐसा सम्बन्ध है। एकक्षेत्रावगाहमें जो कर्मबन्धन है, उसमें जो विभावकी परिणति होती है, उसमें वह निमित्त है। लेकिन वह करता कुछ नहीं। परिणमता है वह स्वयं। उस जातका कोई अचिंत्य स्वभाव है। अचिंत्य है। स्फटिक दृष्टांतमें देखो तो भी अचिंत्य लगे। बाहरसे फूल कुछ करता तो नहीं है। तो भी स्फटिककी परिणति लाल और हरे आदि रूप होती है। तू वैसा परिणमन कर ऐसा भी नहीं कहता। स्फटिक स्वयं ही परिणमता है। दूर हो तो उसमें वैसी परिणति होती भी नहीं। ऐसा है। उसमें तो स्वयं दूर और पास (होता है)। इसमें तो स्वयं अशुद्धतारूप परिणमता है इसलिये एकक्षेत्रावगाहमें कर्म बन्धता है। उसे कोई लेने नहीं जाता। कर्म बन्धता है। स्वयं यदि शुद्धरूप परिणमे, मूल द्रव्यमें शुद्धता है वैसे स्वयं परिणमे तो उसे निमित्त जबरजस्ती परिणमित नहीं करवाता। छूट जाता है। उसका वह