Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

३२४ जाननेमें आता है। जाननेमें बाहरका ही जानता है। बाकी जो अंदर रहा वह क्या रहा?

समाधानः- अंदर तत्त्व ही जाननेवाला है, तत्त्व ही जाननेवाला है। बाहरका वह सब नहीं जानता है। वह तो उसका क्षयोपशमभाव, जितनी उसकी शक्ति है उतना ही जानता है। सब नहीं जानता है। जाननेवाला सब कहाँ जानता है? उसकी जाननेकी तो अनन्त शक्ति है। लेकिन सब जानता नहीं। वह तो अल्प जानता है। वह तो इन्द्रियोंका आश्रय लेकर, मनका आश्रय लेकर अल्प जानता है। जानता है वह स्थूल जानता है। वह कहीं सूक्ष्म नहीं जानता।

जानता है वह क्रम-क्रमसे जानता है। एकसाथ कुछ नहीं जानता। जाननेवालेका जो मूल स्वभाव है, वह मूल स्वभावरुप कुछ नहीं जानता। जानता है वह मात्र स्थूल जानता है। लेकिन वह जाननेवाला तत्त्व है उस जाननेवालेने सब नहीं जाना। जाननेवाला जो तत्त्व है उसको उसने नहीं जाना। जाननेवाला सब जानता है। वह जाननेवाला अनंत जानता है ऐसा उसका स्वभाव है।

जो जाननेवाला स्वयंको जानता है, जो जाननेवाला परको जानता है, ऐसा उसका सब जाननेका (स्वभाव है)। सबसे दूर रहकर, उसके क्षेत्रमें गये बिना स्वयं अपने क्षेत्रमें रहकर, चाहे जितना उससे दूर हो, लाख-करोड गाँव दूर हो, तो भी दूर रहकर सब जाने ऐसा उसका स्वभाव है। ऐसा वह जाननेवाला तत्त्व है। जिसे आँखकी जरुरत पडती नहीं, जिसे मनकी जरुरत नहीं पडती, जिसे कानकी जरूरत नहीं पडती, कोई पदार्थकी जिसे जरुरत नहीं पडती कि आँखसे देखे, कानसे सुने, इसलिये वह जाने अथवा मनसे विचार करे तो जाने, ऐसे कोई आश्रयकी जिसको जरुरत नहीं है, लेकिन वह स्वयं हजारों गाँव दूर हो तो भी उसको जान सके। ऐसा जाननेवाला तत्त्व अंदर है कि वह स्वयं जाने, अपने ज्ञान स्वभावसे जाने। और वह दूसरेको जाने इतना ही नहीं, वह स्वयं अपनेको जाने। अपने अनंते गुणको जाने, खुदकी अनंती पर्यायको जाने। अनंतकालमें कैसी पर्याय हुयी और किस तरह द्रव्य परिणमन करके भविष्यमें कैसे परिणमन करेगा, वह सब जाने। ऐसा जाननेवाला तत्त्व है। जानना अर्थात ऐसा जाननेका जिसका स्वभाव है, वह जाननेवाला तत्त्व है।

मुमुक्षुः- जो मूल तत्त्वको जाननेवाला है।

समाधानः- वह मूल तत्त्वको जाननेवाला तत्त्व है।

मुमुक्षुः- ज्ञानस्वभाव।

समाधानः- ज्ञानस्वभाव। वह ज्ञान स्वभाव है। ये तो उसको लक्षणकी पहचान होती है कि इतना जो जानता है, जो परके आश्रयसे जानता है वह जाननेवाला ऐसा तत्त्व है कि स्वयं जाने। आँखसे जाने, कानने सुने या मनसे विचार करे ऐसा जो जानता है, वह जाननेवाला तत्त्व ऐसा है कि स्वयं जाने। किसीके आश्रय बिना जाने। किसीके आश्रयसे जाने वह उसका स्वतः स्वभाव नहीं है। उसका स्वतः स्वभाव तो ऐसा हो कि जो अपनेसे जाने। जिसे किसीके आश्रयकी जरुरत न पडे वैसे जाने। ऐसा उसका ज्ञानस्वभाव है। अपने-से जाने। जो ज्ञानरुप अपने-से परिणमे। जो आनंदरुप अपने-से परिणमे। जिसे किसीके आश्रयकी जरुरत न पडे। ऐसा उसका स्वभाव है। ऐसी