Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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उपादानका (सम्बन्ध)। अर्थात सच्चे देव-गुरु तुझे मिले नहीं, और मिले तो तूने निमित्तको
निमित्तरुप ग्रहण किया नहीं। इसलिये तुझे मिले नहीं है ऐसा कहते हैं, बहुत बार मिले तो भी।

लेकिन यह सम्यग्दर्शन दुर्लभ है। उपादान तैयार किया हो तो निमित्त-उपादान का सम्बन्ध हुए बिना रहता नहीं। इसलिये सम्यग्दर्शन दुर्लभ है। ऐसी भेदज्ञान की परिणति प्रगट करनी दुर्लभ है। द्रव्यदृष्टि आत्माकी, भेदज्ञान, उसकी साधक दशा, आत्माको लक्ष्यमें लेना, स्वानुभूतिकी प्राप्ति करनी वह सब दुर्लभ है। लेकिन वह न हो तबतक उसकी भावना, जिज्ञासा करना। जिज्ञासा बढाते रहना। उसके लिये आकुलता करके, खेद करके उलझना नहीं, परन्तु उत्साह रखना। न हो सके तो भी उत्साह रखना।

मुमुक्षुः- हो सके तो...

समाधानः- बन सके तो ध्यानमय... यदि कर सके तो तू... आचार्यदेव और गुरुदेव कहते थे, गुरुदेव और सब उपदेश तो ऐसा ही देते थे कि हो सके तो सम्यग्दर्शनसे लेकर पूर्णता प्राप्त करना। केवलज्ञान तक प्राप्त करना, तुझसे बन पाये तो। और न हो सके तो श्रद्धा करना। न हो सके तो। वह मुनि बनते हैं तो मुनिका उपदेश देते हैं। मुनि न हो सके तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करना, ऐसा कहते हैं। सम्यग्दर्शन दुर्लभ हो और न बन पाये तो उसकी श्रद्धा करना। उसकी महिमा करना। अपूर्वता लाना।

मुमुक्षुः- ... वह कैसे जाने? बाहरका और अंदरका किस तरह जाने?

समाधानः- बाहरका जानना नहीं। अंदर स्वभाव जानना... जानना.. जो स्वभाव है वह। यह बाहर जाना ये ज्ञेय, यह जाना, वह जाना ऐसा नहीं। जाननेका जो स्वभाव है वह जानन तत्त्व है उसको जानना। बाहरका जानना ऐसा नहीं। जानना-जानना। यह जड पदार्थ कुछ जानता नहीं, अंदर जाननेवाला कोई भिन्न है। वह जाननेवाला जो जानता रहता है, मूल तत्त्व जो जानता है वह जाननेवाला तत्त्व, जाननेवाला जो पदार्थ है वह।

अब तकका, भूतकालका अथवा अपने जीवनके जो भी प्रसंग बने वह सब तो चले गये, फिर भी जाननेवाला तो ज्योंका त्यों खडा है। वह जाननेवाला तत्त्व जो है, वह जाननेवाला तत्त्व है। जानना.. जानना.. जाननेवालेमें जानना है। वह सबकुछ जानता है। जाननेवालेकी मर्यादा नहीं हो ऐसा सबकुछ जाने ऐसा जाननेका स्वभाव वह जाने।

मुमुक्षुः- अर्थात अपना ज्ञानस्वभाव अंदर?

समाधानः- हाँ। ज्ञानस्वभाव।

मुमुक्षुः- जाननेसे उसका ज्ञानस्वभाव जाननेमें आ जाता है?

समाधानः- हाँ। अपना ज्ञानस्वभाव है। खुदका स्वभाव है जानना।

मुमुक्षुः- यह तो कठिन है, ऐसा लगता है। ज्ञानस्वभाव अर्थात किस तरह ज्ञानस्वभाव कहते हैं? जानना मतलब जाननेवाली सब चीजें तो ज्ञात हो जाती है। जानना तो बाहरका सब