Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

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समाधानः- हाँ, उसमें आती है। जिसे आत्माका स्वरूप समझना है, ऐसे देव- गुरु-शास्त्र जो समझाते हैं, आत्माका स्वरूप जो अनादिसे नहीं समझा है, उसे समझानेवाले ऐसे सत्पुरुष-ज्ञानी के प्रति महिमा आये बिना नहीं रहती। क्योंकि जो आत्माका स्वरूप समझाये उस पर उसे महिमा आती है। क्योंकि अनादिसे जो मार्ग प्राप्त नहीं हुआ है, वह जो समझाये उस पर महिमा आये बिना रहती ही नहीं। आत्माका स्वरूप ऐसा है, अनन्त आनन्दसे भरा अपूर्व अनुपम तत्त्व है, ऐसा मार्ग जो दर्शाते हैं, ऐसे गुरु पर, देव पर उसे महिमा आये बिना रहती ही नहीं। क्योंकि अनादिका अनजाना मार्ग, जो स्वयंको जिज्ञासा है, वह मार्ग गुरुदेव बताये और उस भूमिकामें स्वयं खडा है, उस भूमिकामें अमुक प्रकारकी भक्तिकी भूमिकामें खडा हो तो उसे महिमा आये बिना रहती ही नहीं।

जब तक स्वयंने आत्माको जाना नहीं, इसलिये जो समझाते हैं उस पर भक्ति आये बिना रहती ही नहीं। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करे तो भी उसकी वह भूमिका है तो देव-गुरु-शास्त्र पर उसे भक्ति आये बिना रहती ही नहीं। क्योंकि वीतरागदशा नहीं होती तबतक बीचमें प्रशस्त रागकी भूमिकामें खडा है इसलिये उसे आये बिना रहता ही नहीं। उसे वह रोकते नहीं, लेकिन बीचमें आये बिना नहीं रहता।

मुनि हो तो मुनिको भी बीचमें आती है। मुनि शास्त्र लिखे तो प्रारंभमें जिनेन्द्र भगवानको नमस्कार करते हैं, सिद्ध भगवानको नमस्कार करते हैं। मुनिओंको भी आये बिना नहीं रहती। वह तो बीचमें आता ही है। तो जिसकी जिज्ञासुकी भूमिका है, जिसने मार्ग जाना नहीं है, उसे तो आये बिना रहती ही नहीं। क्योंकि एक तो स्वयं कुछ समझता नहीं और जो अनादिका मार्ग गुरुदेवने बताया तो उन पर भक्ति आये बिना रहती नहीं। क्योंकि अनादिका ऐसा अनजाना मार्ग कि जो स्वयं कुछ समझता नहीं, ऐसा मार्ग जिसने समझाया उस पर उसे महिमा आती ही रहती है।

ऐसे पंचमकालमें गुरुदेव पधारे और ऐसा मार्ग बताया तो महिमा आये बिना उसे नहीं रहती और आत्माका ध्येय उसे साथमें रहता है कि ऐसा आत्मा है, वह आत्मा मुझे कैसे प्रगट हो? प्रगट होनेका निमित्त जो गुरुदेव पर, देव-गुरु-शास्त्र पर भक्ति आये बिना नहीं रहती।

मुमुक्षुः- उसमें कोई विरूद्धता नहीं है।

समाधानः- विरूद्धता नहीं है। भक्तिके साथ आत्माकी जिज्ञासाको विरूद्धता नहीं है। दोनोंका सम्बन्ध है। विरूद्धता नहीं है। सम्यग्दर्शनकी भूमिकामें भी वह होती है- देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति। और मुनिओंको भी होती है। उसकी भूमिका अनुसार होती