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समाधानः- हाँ, व्यवहारसे ज्ञान। कहते हैं न? तू सच्चा ज्ञान कर, सच्चे ज्ञान बिना रखडा। ज्ञान बिना आत्माको ग्रहण कैसे करे? सच्ची समझ बिना आत्माको ग्रहण करना, आत्माका निर्णय करना, वह सब ज्ञानसे होता है। इसलिये ज्ञान उसे व्यवहारसे साधन बनता है। प्रगट करना है सम्यग्दर्शन, दृष्टि प्रगट करनी है। लेकिन उसमें ज्ञान साथमें रहता है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि (मोक्षमार्ग)। लेकिन सम्यग्दर्शन कैसे प्रगट करना? कि सच्चा ज्ञान कर। सच्चा ज्ञान किये बिना दृष्टि कैसे प्रगट करनी, बिना जाने?
मुमुक्षुः- माताजी! ज्ञानीके सम्यग्दर्शनको अंतरंग निमित्त कहनेमें आता है, उसका आशय क्या है?
समाधानः- उसे अंतरमें परिवर्तन हो गया है। अंतरमें उसकी पूरी दशा पलट गयी और उसमेंसे जो वाणी निकलती है, वह वाणी दूसरेको निमित्त होती है, इसलिये उसे अंतरंग कारण कहनेमें आता है। जिसे अन्दर प्रगट हुआ है, उसीकी वाणी निमित्त बनती है। इसलिये उसे अंतरंग कारण (कहते हैं)। दूसरेको जो सम्यग्दर्शन होता है उसमें, जिसने प्राप्त किया है उनकी वाणी निमित्त बनती है, इसलिये अंतरंग कारण कहनेमें आता है। बाकी है वह परद्रव्य है। तो भी उसे अंतरंग कारण कहनेका कारण कि जिसे अंतरंगमें प्रगट हुआ है, उसके साथ जो वाणी है, वह वाणी निमित्त बनती है। इस अपेक्षासे उसे अंतरंग कारण कहनेमें आता है।
मुमुक्षुः- ज्ञानीकी वाणी ही अंतरंग निमित्त कहनेमें आती है? इसके सिवा अन्य किसीकी वाणीको अंतरंग निमित्त नहीं कहते?
समाधानः- दूसरेकी वाणीको अंतरंग निमित्त नहीं कहते। जिसे अंतरंग दशा प्रगट नहीं हुई है, उसकी वाणीको अंतरंग निमित्त नहीं कहते। व्यवहारसे भले उससे जाने, लेकिन अंतरंग जो देशना लब्धि प्रगट होती है, अंतरंगमें सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, उसमें तो जिसने प्राप्त किया है उनकी वाणी ही निमित्त होती है। उसके साथ ही निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध होता है। उसे ही अंतरंग कारण कहते हैं, दूसरेको नहीं कहते।
मुमुक्षुः- अंतरंग परिवर्तन होता है इसलिये उसे अंतरंग कारण कहते हैं? सामनेवाले जीवको अंतरंगमें परिणमन होता है, इसलिये अंतरंग कारण कहते हैं?
समाधानः- उसे परिणमन हो, यहाँ अंतरंग दशा साथमें होती है और उसे अंतरंग परिणमन (होता है)। अंतरंग परिणमन हो, वाणी किसको निमित्त होती है? जिसने प्राप्त किया है, उनकी वाणी ही निमित्त होती है। उसे अंतरंग परिवर्तन हुआ इसलिये अंतरंग कारण, वह तो ठीक है, लेकिन जिसने प्राप्त किया है, उसकी वाणी ही निमित्त बनती है। इसलिये उसे अंतरंग कारण कहा है। (प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!)