Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-०३६

प्रत्येक प्रसंगमें उसे विरक्ति ही वर्तती है।

उसी प्रकार यहाँ भिन्न हो गया, ज्ञायककी धारा प्रगट हो गयी तो किसी भी विभावके विकल्पमें यथार्थरूपसे भिन्न हो गया। फिर भिन्न ही रहता है। पुरुषार्थ तो उसका चालू ही है, परन्तु वह ज्ञायकधाराका पुरुषार्थ है। उदयधारा और ज्ञानधारा। प्रत्येक उदयके समय उसकी ज्ञानधारा चालू है, उसकी ज्ञायकधारा चालू रहती है। अस्तित्वकी ज्ञायकधारा चालू है और नास्तिमें दूसरोंसे भिन्न पडता है। भेदज्ञानकी धारा चालू है, विकल्प आते हैं उससे भिन्नताकी उसकी परिणति चालू है और उसे इस ओरसे ज्ञायककी उग्रता, ज्ञानधारा चालू है। उसे पुरुषार्थमें ज्ञानकी धारा है।

मुमुक्षुः- ज्ञानधाराका पुरुषार्थ माने क्या?

समाधानः- ज्ञानधारा-ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायककी परिणति चालू है। ज्ञायककी परिणति चालू है।

मुमुक्षुः- हर वक्त उसे ज्ञायककी परिणति है?

समाधानः- प्रत्येक समय ज्ञायककी परिणति भूलता नहीं। ज्ञायककी परिणति, ज्ञायकका वेदन, उसे ज्ञायककी ही परिणति चालू है। विकल्पके साथ आकूलतामें एकमेक होता नहीं। चाहे कोई भी भाव हो, चाहे कोई ऊँचेसे ऊँचे भाव हो, शुभभाव हो, कोई भी (भाव) हो, उसमें वह एकत्व नहीं होता। बाहरमें उसे दिखाई दे, बहुत उल्लास दिखाई दे तो भी वह कोई भी भावमें एकत्व नहीं होता। उसकी ज्ञायककी परिणति चालू ही रहती है। प्रत्येक समय भिन्न (रहती है)। उसकी दिशा ही बदल गयी है। विभावकी ओर जो दृष्टि थी, वह पलटकर उसकी दिशा ही बदलकर ज्ञायककी ओर गयी है।

मुमुक्षुः- अर्थात वहाँ ज्ञायकका एकत्व चालू है?

समाधानः- हाँ, ज्ञायकका एकत्व चालू है। ज्ञायकमें एकत्व और अन्यसे विभक्त। एक पुरुषार्थमें दोनों आ जाते हैं। भेदज्ञानकी धारा चालू है और यहाँ ज्ञायकका एकत्व चालू है। क्षण-क्षणमें विकल्प करके जुदा नहीं होना पडता, परन्तु प्रत्येक उदयमें वह जुदा ही रहता है।

मुमुक्षुः- एक पर्यायमें दो भाग हो गये?

समाधानः- एक पर्यायमें दो भाग नहीं होते, परन्तु अस्तित्वकी ओरसे लो तो ज्ञायककी धारा है और इस ओर देखो तो उसे भेदज्ञानकी धारा है। उसे दो भाव भिन्न पडते हैं। दो पर्याय नहीं होती, लेकिन दो भाव भिन्न पडते हैं।

मुमुक्षुः- एक पर्यायमें दो भाव हो जाते हैं?

समाधानः- दो भाव होते हैं। अस्तित्वके साथ नास्तित्व आ ही जाता है। अपना