Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

२३४ है, मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है, लेकिन वह मेरा स्वभाव नहीं है। इसप्रकार ज्ञानमें सब जानता है। और उसमें (-रुचिमें) मैं जाननेवाला एक ज्ञायक हूँ। मेरेमें नहीं है। प्रतीतमें-रुचिमें ऐसे रहता है।

मुमुक्षुः- रुचि अर्थात श्रद्धानमें उसे ऐसा रहता है कि मेरे द्रव्यमें-स्वभावमें तो राग है नहीं।

समाधानः- हाँ, श्रद्धा। श्रद्धा कहो, प्रतीत कहो, रुचि कहो।

मुमुक्षुः- श्रद्धा अनुसार वर्तन (क्यों नहीं होता)? श्रद्धा-विश्वास पका हुआ, फिक्षर चारित्रमें क्यों देर लगती हो?

समाधानः- उसके प्रयत्नकी कचास है। श्रद्धाका जोर है कि ऐसे ही है। तो आंशिक तो उसे हो जाता है। अमुक अंश तो प्रगट हो जाता है। जहाँ श्रद्धा यथार्थ होती है वहाँ ज्ञायककी परिणित अमुक प्रकारसे तो प्रगट हो जाती है। उससे भिन्न पड जाता है। उसे स्वानुभूति होती है, उससे भिन्न पडे, लेकिन उसे थोडा बाकी रहता है। वह उसके प्रयत्नकी क्षति है। लेकिन श्रद्धामें इतना बल है कि प्रयत्न करके भी अवश्य प्रगट होता है। पार हो जायेगा। प्रयत्न उसका चालू ही रहता है। उसका प्रयत्न छूट नहीं जाता। प्रयत्न चालू ही रहता है।

क्षण-क्षणमें जो विभाव परिणति उत्पन्न होती है, उसके सामने उसका प्रयत्न उतना जोरदार खडा रहता है। श्रद्धाका बल और ज्ञायककी परिणति स्वयं अपनी ओर, अपनी परिणतिको खीँचता हुआ स्वयं प्रतिक्षण खडा रहता है। उसके प्रयत्नमें जितना हो उतना उसे सहजरूपसे रहता है। बाकी थोडी देर लगती है, प्रयत्नकी कचास है इसलिये।

ज्ञायकधारा प्रतिक्षण मौजूद रहती है। उसमें (-विभावमें) तन्मय नहीं हो जाता। उतना प्रयत्न उसका प्रगट हुआ है। श्रद्धाके बलके साथ उतना प्रयत्न तो उसे जोरदार रहता है कि एकत्व होता ही नहीं। उसके साथ जो अनादिसे एकत्व था, अब एकत्व नहीं होता। भिन्न ही भिन्न, प्रत्येक कार्यमें भिन्न ही रहता है। स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हुयी। (विभावके) साथ एकत्व तो होता ही नहीं। किसी भी क्षणमें एकत्व नहीं होता। उसके प्रयत्नसे एकत्व (नहीं होता)। सहज ऐसा उसका प्रयत्न चलता है। कोई कार्यमें, विभाव सम्बन्धित कोई विकल्पमें, शुभाशुभके किसी भी विकल्पमें एकत्व नहीं होता। शुभ विकल्प ऊँचेसे ऊँचा हो तो भी एकत्व तो होता ही नहीं। किसी भी क्षणमें एकत्व नहीं होता। इतना प्रयत्न उसका चालू रहता है। फिर विशेष प्रयत्न चारित्रदशामें देर लगती है। किसीको तुरन्त होता है, किसीको देर लगती है।

मुमुक्षुः- ... धीरा होकर ज्ञायकको मुख्य लक्षण द्वारा पहचानकर वहाँ स्थिर रहे अथवा तो उसका अवलम्बन ले तो.. ज्ञान लक्षण अर्थात जानता है.. जानता है..