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मुमुक्षुः- माताजी! प्रारंभ ही कठिन है या पूरे मार्गमें पुरुषार्थ चाहिये?
समाधानः- प्रथम भूमिका विकट होती है। श्रीमदमें आता है न? प्रथम भूमिका विकट होती है। प्रथम भूमिका... अनादिसे उसे एकत्वबुद्धि गाढ हो रही है, उसमेंसे उसे निकलना विकट है। फिर तो मार्ग सहज है और सुगम है। अपना स्वभाव है। ऐसे सहज स्वभावको उसने पहचाना और उसे प्रगट हुआ, उसके बाद मार्ग सहज और सुगम है। प्रथम भूमिका जितनी विकट होती है, उतनी उसकी प्रत्येक भूमिका विकट नहीं होती। पुरुषार्थकी धारा तो सबमें चालू ही रखनी पडती है। पुरुषार्थकी धारा तो। लेकिन प्रथम भूमिक विकट होती है।
मुमुक्षुः- उसे टिकाये रखना विकट है।
समाधानः- प्राप्त करना विकट है। टिकाये रखनेमें भी पुरुषार्थ चाहिये। प्राप्त किया है उसे टिकाये रखना वह अपने पुरुषार्थसे (होता है), परन्तु प्राप्त करना अधिक विकट है। प्राप्त करनेके बाद टिकाना विकट है, लेकिन जिसे पुरुषार्थ चलता हो उसे विकट नहीं है। जिसका पुरुषार्थ छूट जाता हो उसे विकट है। पुरुषार्थ छूटे तो। जिसे पुरुषार्थ चलता हो उसे विकट नहीं है, पुरुषार्थ नहीं चलता हो उसके लिये विकट है, उसे टिकाना विकट है। जो अप्रतिहत धारासे चला हो, चारों पहलूसे (यथार्थ प्रकारसे) शुरूआत की हो, उसे टिकाना विकट नहीं है। लेकिन जो चारों पहलूसे नहीं चला हो तो उसके लिये विकट है। लेकिन प्रथम भूमिका अधिक विकट है।
... विकल्प टूट जाये तो आती है। लेकिन पहले विचार करके निर्णय करे तो उसमें भी उसे महिमा आती है। परन्तु यथार्थ महिमा तो उसमें वह लीन हो, स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हो तो उसे यथार्थ महिमा आती है। स्वयं विचार करके नक्की करता है, वह विचार करके नक्की करता है, तो भी उसे महिमा आती है। अनन्त जीव मोक्षमें गये हैं, अपना स्वभाव है इसलिये। अनन्तने भेदज्ञानको प्रगट किया, चारित्रदशा प्रगट की, अनन्त जीव मोक्षमें गये हैं, अपना स्वभाव है इसलिये। पहले विकट लगता है। विकट होनेपर भी नहीं हो सके ऐसा नहीं है। कल वह सब आये थे न? (कहते थे), बहुत विकट है। विकट है लेकिन नहीं हो सके ऐसा नहीं है। स्वयं पुरुषार्थ करे तो हो सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- उसे प्रयत्न चालू रखना चाहिये।
समाधानः- प्रयत्न चालू रखना चाहिये। .. जो चारों पहलूसे नहीं चला हो, कोई कारणसे शुरूआत की हो तो उसे पुरुषार्थ मन्द होनेका कारण बनता है। चारों पहलूसे चला हो उसे पुरुषार्थकी धारा चलती है। तो भी पुरुषार्थ तो उसे आखिर तक अप्रतिहत धारासे पुरुषार्थ तो करना ही पडता