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है?
समाधानः- आत्मा हाथमें नहीं आये तो भी उसका बारंबार प्रयास करते रहना। मैं तो भिन्न ही हूँ। उसके विचार करता रहे, उसकी प्रेरणाके लिए। करना तो यह एक ही है। दूसरा तो कुछ नहीं है। महिमा नहीं आती हो तो महिमा लाये। उसका स्वभाव पहचाननेका प्रयत्न करे। देव-गुरु-शास्त्र, गुरु क्या कहते हैं, जिनेन्द्रदेवने क्या कहा है? गुरुदेवने उपदेशमें बहुत कहा है। गुरुदेवका उपदेश याद करे कि गुरुदेवने क्या कहा है? गुरुदेवने तो पुरुषार्थ हो ऐसी बहुत प्रेरणा दी है। गुरुदेवका उपदेश याद करना। शास्त्र स्वाध्याय करे, विचार करे। लेकिन करना तो अंतरमें है। बाहर थोडा शास्त्र स्वाध्याय करके यह सब विचार, वांचन करके मान ले कि मैंने बहुत किया है, ऐसा माने तो नहीं होता। करनेका अंतरमें है।
गुरुदेवका उपदेश प्रेरणा दे रहा है। गुरुदेवका उपदेश इतना जोरदार था कि दूसरेका पुरुषार्थ चालू हो जाये, ऐसा उनका प्रेरणादायक (उपदेश) था। तू कर। जोरदार सिंहकी दहाड लगाते थे। लेकिन स्वयं करता नहीं। उपादान तो बलवान था, लेकिन स्वयंने ही नहीं किया है। स्वयंके प्रमादके कारण चैतन्यको (जाना नहीं)। "निज नयननी आळसे रे निरख्या न हरिने जरी।' स्वयंके प्रमादके कारण स्वयं देखता नहीं।