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मुमुक्षुः- लकडहारा तुरंत धर्म प्राप्त करे और मोक्षमें जाता है। तो .. इतनी देर लगती है?
समाधानः- लकडहारा प्राप्त करता है, पुरुषार्थ करे उसे होता है। सब आत्मा ही है। उसका देह लकडहारेका मिला उसमें क्या हुआ? जो पुरुषार्थ करता है उसे होता है।
मुमुक्षुः- सब मुमुक्षुओंकी भावना तो यही है कि बारंबार भाग-भागकर ...
समाधानः- हाँ, लेकिन पुरुषार्थ उतना नहीं है। पुरुषार्थ नहीं है, भावना है। भावना करता रहे लेकिन जो मार्ग है, उस मार्गको स्वयं अंतरमेंसे पुरुषार्थ करके प्रगट नहीं करता है। भावना करता रहे।
मुमुक्षुः- भावना आसान है, पुरुषार्थ कठिन पडता है न।
समाधानः- पुरुषार्थ कठिन पडता है, जो वस्तु है उस वस्तु अनुसार कार्य करना। वह आता है न? मुझे बंधन है, मुझे बंधन है, ऐसा विचार करता रहे। बंधन है- बंधन है करते रहनेसे बंधन टूटता नहीं, बंधनको तोडे तो बंधन टूटता है।
मुमुक्षुः- तोडनेके लिये तो हम सब आपके पास आते हैं।
समाधानः- तोडना तो अपने हाथकी बात है। उसे दूसरा कोई नहीं तोड देता। विचार श्रृंखला, शास्त्रमें (आता है) विचार श्रृंखला। बंधन है, बंधन है ऐसी विचार श्रृंखला करता रहे तो बंधन टूटता नहीं। मैं भिन्न-भिन्न (हूँ), भले भावना करे। दूसरी भावनासे यह भावना उसकी अच्छी है, विचार करता रहे कि मैं भिन्न हूँ, भिन्न हूँ, ऐसे विचार करते रहनेसे (भिन्नता नहीं होती)। भिन्नता करनेका प्रयत्न करे तो भिन्न पडता है। बेडीका बंधन है, बंधन है, ऐसा करे, तोडना है, ऐसा विचार करे तो भी नहीं टूटता। तोडनेका कार्य करे तो ही टूटे।
भावना करता रहता है, मुमुक्षु (विचार करता है कि) मैं भिन्न हूँ, यह मेरा स्वरूप नहीं है। कब प्रगट हो, ऐसा विचार करे, विचार करनेसे नहीं होता। विचार भले ही उसे एक साधनके स्थान पर रहे, लेकिन तोडना तो अपने हाथकी बात है। तोडे बिना टूटता नहीं।