मुमुक्षुः- ऐसा आता है कि ज्ञानीका एक शब्द सुने और अन्दरमें पटला हो जाता है।
समाधानः- पलट जाता है अपने पुरुषार्थसे। उपादान अपना है। पुरुषार्थके बिना पलटना नहीं होता। गुरुदेव कहते हैं न, अनेक बार भगवान मिल तो भी स्वयं अपने पुरुषार्थकी कमीके कारण पलटा नहीं। भगवानका निमित्त तो जोरदार था और गुरुदेवका निमित्त जोरदार था। लेकिन स्वयं पलटता नहीं।
मुमुक्षुः- पलटना नहीं आता।
समाधानः- आता नहीं ऐसा नहीं है, स्वयंकी उतनी तैयारी नहीं है, नहीं तो आये बिना रहे ही नहीं। लेकिन स्वयं पलटता ही नहीं।
मुमुक्षुः- भावना तो है कि पलटना है, पुरुषार्थ करना है।
समाधानः- पलटना है ऐसा विचार करे। बेडी तोडनी है, उसे सूझे कि इस प्रकार बेडी तोड, तो ही टूटे। बेडीसे जो उलझा हो, वह बेडी तोडनेका मार्ग ढूँढे बिना रहता ही नहीं। उलझ गया है कि यह कैसे टूटे? उसका मार्ग चाहे जैसे पूछकर, स्वयं नक्की करके, चाहे जितने साधन इकट्ठे करके तोडे बिना नहीं रहता। जो वास्वतमें उलझनें आया है, वह छूटे बिना नहीं रहता। स्वयंको अन्दरसे वास्तविक रूपमें लगी नहीं है। उतनी तीव्र तालावेली नहीं है। लगे तो तोडनेका प्रयत्न स्वयं ही करता है।
मुमुक्षुः- अभी वर्तमान कालमें तो सभी मुमुक्षुओंको यह भावना है कि हमें ज्ञानी गुरुदेव मिले हैं, माताजी मिले हैं, बारंबार उनका परिचय करे, बारंबार उनके पास जायें, बारंबार समीप रहकर लाभ लें। ऐसी भावना है। वैसे सुनना, पढना सब है। अब पलटनेमें विशेष...
समाधानः- अंतरमें धीरा होकर, सूक्ष्म होकर आगे जाना चाहिए वह नहीं जाता, अनादिसे यह सब करता रहता है। वह उसे कठिन लगता है।
मुमुक्षुः- ज्ञानी बारंबार कहे तो भी उसे आगे नहीं बढना है?
समाधानः- करना तो स्वयंको ही है, दूसरा कोई नहीं कर देता।
मुमुक्षुः- महाविदेह क्षेत्र जैसा अभी योग है। उसमें यही एक करने जैसा है। फिर भी इतनी देर लगती है?
समाधानः- स्वयं अन्दर विचार करके देखे कि स्वयं ही प्रमाद करके अटका है। तो स्वयंको पकड सकता है कि स्वयं ही अटका है, कोई रोकता नहीं।
मुमुक्षुः- कोई डाक्टर ऐसा इंजेक्शन लगाता है तो त्वरासे दर्द मिट जाता है। वैसे आप..
समाधानः- वह सब तो बाहरका पुण्योदय है। इंजेक्शन देकर नहीं भी मिटे,