२४६
मुमुक्षुः- इतना उनका होता है कि अलौकिक!
समाधानः- हाँ, अलौकिक है। लेकिन आपको अधिक समझना हो तो मलाडमें स्वाध्याय चलता है, गुरुदेवके शास्त्रका स्वाध्याय चलता है, गुरुदेवके प्रवचनका स्वाध्याय चलता है। यह शास्त्र-मूल शास्त्र समयसार चलता है, प्रवचनसार चलता है। वहाँ सब चलता है। वहाँ मलाडमें कौन वांचन करते हैं?
मुमुक्षुः- चीमनलाल ठाकरशी।
समाधानः- चीमनलाल ठाकरशी। उन्हें आप कुछ पूछेंगे तो प्रश्नके उत्तर भी देंगे।
मुमुक्षुः- वहाँ हमेशा वांचन आदि चलता है।
समाधानः- हाँ, वांचन चलता है। वहाँ भगवानका मन्दिर है, वहाँ पूजा होती है, वांचन चलता है, सब होता है।
मुमुक्षुः- कितना भटकते हैं, लेकिन कुछ मिलता नहीं। कोई ज्ञानी (नहीं मिलते)। कितनी जगह गई। कोई कहता है, यहाँ है, यहाँ जाओ, वहाँ है, वहाँ जाओ।
समाधानः- वहाँ मुमुक्षु हैं। गुरुदेवके प्रवचन जिन्होंने सुने हैं, गुरुदेवका परिचय जिन्होंने किया है, वैसे लोग वहाँ हैं। आप वहाँ (रहो) तो आपको ज्यादा ख्याल आयेगा। आपको क्या चलता है, दूसरा तो कैसे मालूम पडे? आपको क्या है वह आपको ही नक्की करना पडे।
... चलती हो, और कोई-कोई बार उसे स्वानुभूति होती है। भेदज्ञानकी धारा चलती है।
मुमुक्षुः- ऐसा लगता है कि स्वानुभूति ऐसी है। भेदज्ञानकी धारा चले तो आप जैसे कहते हो वैसा सहज चलता ही रहे।
समाधानः- .. पूरा द्रव्य आ जाता है। एक-एक गुण पर दृष्टि नहीं, अखण्ड अभेद पर दृष्टि होती है।
मुमुक्षुः- ऐसा ही। भेद नहीं, अखण्ड अभेद। क्योंकि अन्दरमें वैसी ही वस्तुस्थिति अन्दरमें है।
समाधानः- ..जैसे हिरेमें चमक होती है। वैसे वस्तु एक है, लेकिन उसमें पर्याय (हैं)। ज्ञान ज्ञानका कार्य लाये, चारित्र चारित्रका कार्य लाये, वह सब कार्य लाते हैं। लेकिन अभी ज्ञान, दर्शन, चारित्र प्रगट नहीं हुए हैं, इसलिये ज्ञान, दर्शन, चारित्र विभावमें वर्तते हैं। स्वभाव प्रगट हो तो ज्ञान, दर्शन, चारित्र स्वभावकी ओर प्रगट होते हैं, उसका कार्य आता है। लेकिन भेद पर उसकी दृष्टि नहीं होती। ज्ञानमें सब होता है। जानता है, लेकिन दृष्टि तो एक द्रव्य पर, अभेद पर होती है।
मुमुक्षुः- दोनोंकी संधिके बीच प्रज्ञाछैनी पटकनेसे, कहा है न? कि दोनोंकी संधिमें...