भेदज्ञान करनेकी जिसकी भावना है, विभाव परसे जिसकी रुचि छूट गयी है, लौकिक सब कार्य परसे जिसकी रुचि छूटकर एक आत्मा, लोकोत्तर जो आत्मा अलौकिक है, उस पर जिसकी रुचि लगी है, वही मुझे चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। एक ज्ञायक, उस ज्ञायकमें ही जिसे सर्वस्व लगा है। ऐसा भेदज्ञान करनेका प्रयास करनेकी जिसे रुचि, जिज्ञासा है, ऐसा जो वर्तमानमें पुरुषार्थ करता है, उसका क्रमबद्ध उसके अनुकूल ही होता है। उसका क्रमबद्ध विपरीत हो ही नहीं सकता। पुरुषार्थ ज्ञायककी ओरका करे और उसका क्रमबद्ध संसारकी ओरका हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
जिसकी रुचि ज्ञायककी ओर है, उसके क्रमबद्धमें ज्ञायककी ही परिणति होती है। उससे अलग क्रमबद्ध हो ही नहीं सकता। कोई ऐसा विचार करे कि ज्ञायककी तो रुचि है, लेकिन क्रमबद्ध दूसरा होगा तो? ऐसा बन सकता नहीं। इसलिये ज्ञायककी रुचि, ज्ञायकका पुरुषार्थ तू कर तो तेरा क्रमबद्ध उसी प्रकार परिणमित हुआ रहता है। इसलिये क्रमबद्धकी चिंता नहीं करनी, स्वयं पुरुषार्थ करना। पुरुषार्थ करे उसका भाविका क्रमबद्ध ज्ञायककी ओरका ही होता है।
मुमुक्षुः- वर्तमान सत है, ऐसा कहनेमें आता है।
समाधानः- जो वर्तमानमें ज्ञायककी ओरका पुरुषार्थ करता है, उसका क्रमबद्ध उसी प्रकारसे परिणमित हुआ रहता है। वर्तमान सत है वह तो ज्ञायक स्वयं सत ही है। लेकिन वर्तमानमें स्वयं ज्ञायककी ओर पुरुषार्थ करे तो उसका क्रमबद्ध वैसा ही होता है। जैसा पुरुषार्थ, वैसा ही उसका क्रमबद्ध होता है। जो ऐसा कहे कि क्या करें, क्रमबद्धमें जो होनेवाला होगा वह होगा। वह बात जूठी है। जैसा पुरुषार्थ, वैसा उसका क्रमबद्ध।
क्रमबद्धको देखने नहीं जाना पडता, क्रमद्धकी चिंता नहीं करनी पडती कि क्रमबद्ध कैसा होगा? और क्या होगा? भविष्यकी चिंता नहीं करनी पडती। क्रमबद्धको कहीं देखने नहीं जाना पडता। क्रमबद्धको पूछने नहीं जाना पडता। स्वयं ज्ञायककी ओर पुरुषार्थ करे तो उसका क्रमबद्ध वैसा ही होता है। उसे (वैसा ही) सम्बन्ध होता है।
... जो आत्माको-शुद्धात्माको पहचाने उसे शुद्ध पर्यायें प्रगट होती है। जो आत्माको अशुद्ध एकत्वबुद्धि... जिसे एकत्वबुद्धिकी ओर रस है, एकमेक मानता है, उसे अशुद्ध आत्माकी प्राप्ति होती है। अशुद्ध पर्यायें होती है। जिसे ज्ञायककी ओर, शुद्धात्माकी ओर (रुचि है), उसे शुद्ध पर्यायें परिणमती हैैं। स्वयं धीरजसे विचार करके पुरुषार्थ करे, जिज्ञासासे भावनासे जो ज्ञायककी ओर पुरुषार्थ करे तो उसे क्रमबद्धकी चिंता करनेकी जरूरत नहीं है।
क्रमबद्ध (अर्थात) बाहरमें पुण्य-पापका जो उदय आनेवाला है वह आता है। उसे