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मुमुक्षुः- ९१वीं जन्म जयंति मलाडमें सीमंधर भगवानने मुझे..
समाधानः- भगवानके पास थे, वहाँसे यहाँ भरतक्षेत्रमें कैसे आये?
मुमुक्षुः- हमें तो माताजी! बाहरसे तो .. इतना पुण्य लेकर आये हैं।
समाधानः- उन्होंने कितनी वाणी बरसायी है। कुछ बाकी नहीं रखा है। यह तो आपको प्रश्न उत्पन्न होते हैं, इसलिये जवाब देती हूँ।
मुमुक्षुः- आप कोई-कोई बार इतना सुन्दर बोलते हो, उदासीनतामें रस आना चाहिये, ज्ञाता-दृष्टा रहनेमें रस आना चाहिये।
समाधानः- .. आनन्द आना चाहिये। निवृत्तस्वरूप आत्मा है। जो उसका स्वभाव है, उसी जातिका स्वयंको रस होना चाहिये। तो आत्मा उस रूप परिणमन करे, तो उसकी परिणति वैसी होती है। फिर बाहरके कार्यमें भले अमुक प्रकारसे अन्दर जुडे, परन्तु अन्दरसे उसकी एकत्वबुद्धि टूट जाय। अंतरमेंसे ऐसी परिणति, निवृत्तमय परिणति ऐसी (हो कि) अंतरमें उसे वही रुचे।
मुमुक्षुः- प्रवृत्तिमेंसे रस बिलकूल उड जाना चाहिये।
समाधानः- अन्दरसे उड जाय। बीचमें शुभभाव आये वह अलग बात है, लेकिन अंतरमेंसे आनन्द, आत्माका जो निवृत्तमय स्वभाव है, उसमें आनन्द आना चाहिये। स्वभाव परिणतिमें आनन्द आना चाहिये। ज्ञाता रहनेमें रस आना चाहिये। सब जगह कर्ता होनेमें रस छूट जाय। ज्ञाता रहनेमें रस आये। मैं तो जाननेवाला ज्ञायक, उदासीन ज्ञायक हूँ। पर पदार्थका मैं कुछ नहीं कर सकता। उसके कुछ भी फेरफार नहीं कर सकता, मैं तो जाननेवाला हूँ। फिर भी रागके कारण अमुक कार्यमें जुडे। जुडे तो भी उसकी मर्यादा होती है। एकत्वबुद्धि नहीं हो जाती कि वह स्वयंको भूलकर उसमें जुडे। ऐसा नहीं होता। ज्ञायकता, उदासीनताके कारण मर्यादा आ जाती है।
जीवको कर्ताबुद्धिका उतना एकत्व हो गया है कि अपनी ज्ञायकता भूल गया है। और कर्ताबुद्धिकी उतनी एकत्वता हो गयी है। कर्तृत्वमें उतना रस आ गया है। आचार्य भगवानने पूरा कर्ता-कर्म अधिकार अलग लिखा है। गुरुदेव कर्ता-कर्म-क्रिया पर बहुत कहते थे। कर्ताबुद्धिका रस उसे एकत्वबुद्धिसे आता है। ... यहाँ करनेमें शून्यता लगे। ऐसा उसे हो जाय। वह जीवन कैसा? कि शांत परिणमन, उस जातिकी श्रद्धा करनी भी मुश्किल लगे। फिर कार्यमें रखना एक ओर रहा।
मुमुक्षुः- श्रद्धा ही मुख्य है। कोई पहचाने नहीं।
समाधानः- हाँ, कोई पहचाने नहीं। इसमें एक ओर बैठ जाना, ऐसा अर्थ नहीं है। लेकिन उसे ऐसा हो जाता है कि ऐसी श्रद्धा करनी कठिन लगती है। उसे स्वयंको ऐसा हो जाता है। कुछ न करे तो शून्य हो जायेंगे। ऐसा हो जाता है।