Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

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प्रतिष्ठाचार्य, वे अपने आप (करते रहते थे)। रात्रिको कुछ ओर होता था, सबेरे कुछ दूसरा होता था। वे दोनों अपने आप करते रहते थे। किसीको कुछ नहीं कहते थे। उसके साथ दूसरे दो लोग थे, दोनों करते रहते थे। भगवानका जन्म हुआ उस वक्त दिपक करे, घण्ट बजे, रत्नवर्षा होती थी। ऐसे देखते रहते थे कि यह क्या? मानो भगवानका साक्षात जन्म हुआ। दरवाजे पर मुहूर्त लगाया था, वह बजता था, सब आश्चर्य लगता था। उस दिनसे आश्चर्य ऐसे ही चला तो उसमेंसे भगवानकी भक्ति शुरू हो गयी। ऐसा हुआ था।

मुमुक्षुः- सौराष्ट्रमें सर्व प्रथम बार भगवान पधारे।

समाधानः- पहले भगवान पधारे।

मुमुक्षुः- उसमें भी श्वेतांबर लोग तो कैसे..

समाधानः- मानते थे, परन्तु आदत नहीं थी।

मुमुक्षुः- पंच कल्याणक महोत्सव पूरे सौराष्ट्रमें कितने साल बाद हुआ। पहली बार। पंच कल्याणक महोत्सव बहुत सालके बाद हुआ।

समाधानः- गुरुदेवको उतना आश्चर्य लगता था। गुरुदेवने सीमंधर भगवानकी पेटी खोली तो उनको भी उतना आश्चर्य लगा। मानो साक्षात भगवान देखे। साक्षात दर्शन करे। गुरुदेवको उतना आश्चर्य लगा था। चंदुभाईके कमरेमें भगवानको रखे तो बार- बार वहाँ जाकर बैठते थे और स्वयं गाते रहते थे। "सीमंधरजिन दीठा लोयण हार..' ऐसा गाते थे। "निरखत तृप्ति न होय, सीमंधरजिन.. अमीय भरी मूर्ति रची रे, उपमा न घटे कोय, शांत सुधारस झिलती रे, निरखत तृप्ति न होय, सीमंधरजिन दीठा लोयण आज...' ऐसे गाते थे। उनको उतना आश्चर्य लगता था। व्याख्यानमें "विरहा पडयशा सीमंधर भगवानना...', ऐसा कुछ गाते थे। "चंद्रानन जिन सांभळीए अरदास...' वह सब गाते थे। उस दिनसे ऐसे ही चला आ रहा है।

मुमुक्षुः- ... प्रतिष्ठाके समय "रे रे सीमंधरजिनना विरहा पडया...' आता है न? "रे रे सीमंधर जिनना विरहा पडया आ भरतमां...' ऐसे भावपूर्वक...

मुमुक्षुः- ... गुरुदेवको उतनी भक्ति उछलती। आपको उछले वह तो स्वाभाविक है, आपका तो हृदय भक्तिमय दिखता है। गुरुदेवको भी उस समय उतनी भक्ति उछलती थी। षाष्टांग प्रणाम किये।

समाधानः- षाष्टांग प्रणाम। भगवान मन्दिरमें पधारे तो षाष्टांग प्रणाम किये। कितनी देर तक वैसे ही षाष्टांग, उठे नहीं। आँखमेंसे आंसु चले जाय।

मुमुक्षुः- षाष्टांग यानी षाष्टांग। हाथ ऐसे नहीं।

समाधानः- हाथ ऐसे लंबे। इस प्रकार। हाथ जमीन पर, पैर जमीन पर। बस,