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कितनी देर!
मुमुक्षुः- एक यहाँ और एक वहाँ गिरनार पर।
समाधानः- सहस्त्रावनमेें, सहस्रावनमें।
मुमुक्षुः- वहाँ षाष्टांग किये थे। वही षाष्टांग हुए उनके सामने। दूसरे वनेचंद सेठ थे, वह गुरुदेवको षाष्टांग करे। ऐसे काटकोण हो गया। गुरुदेव भगवानकी ओर, यह गुरुदेवकी ओर। वनेचंद सेठ गुरुदेव प्रति षाष्टांग (करते थे)।
समाधानः- तत्त्वका बोले तो तत्त्वका। लेकिन पद्मनंदि पर जब उनके व्याख्यान चलते थे, तब पद्मनंदिको जो व्याख्यान चलते थे उसमें उनकी जो भक्ति उछलती थी। और वे जो बोलते थे, उनका हृदय भक्तिसे भरा है, ऐसा दिखाई देता था। पद्मनंदि पर्युषणमें पढते थे, तब हे प्रभु! हे जिनेश! हे जिनेन्द्र! करके बोलते थे। मेरे नेत्र तृप्त नहीं होते हैैं, ऐसा करके बोलते थे। एकदम भक्तिभावसे उनका व्याख्यान चलता था। सबने सुना तो होगा न।
मुमुक्षुः- प्रतिष्ठा पर भी गुरुदेव भक्तिसे प्रवचन देते थे। बादलके टूकडे हो गये...
समाधानः- हाँ, बादलके टूकडे हो गये। नदी कलकल करके रोती है। दृष्टि और ज्ञानके विषयका उतना और भक्तिका विषय उतना। वैराग्यका आये तो वैराग्य पर चले। लडका दीक्षा ले तो .. वह बोले। कितने पंच कल्याणक देखने मिले। गुरुदेवके प्रतापसे। कितनी वेदी प्रतिष्ठाएँ और कितने पंच कल्याणक हो गये। कितने मन्दिर बन गये। हर गाँवमें मन्दिर हो, इसलिये मुमुक्षु मण्डल, वांचन सब चालू हो गया। मन्दिर हो इसलिये वांचन, भक्ति, पूजन सब शुरू हो जाता है। स्थानकवासीमें कहाँ कुछ (होता है)। उपाश्रय होता है उसमें जाकर पढना होता है।
प्रतिष्ठाचार्य उस दिन तेरापंथी है ऐसा नहीं था। जो प्रतिष्ठाचार्य मिले उसे ले आये थे। हम जयपुर गये थे तो वह कहे, मैं प्रतिष्ठा करता हूँ। कहा, आना। हम किसीको पहचानते नहीं थे। प्रतिष्ठाचार्य जो रामचंद्रजी था, उसे हम ले आये थे। उसे हम ही लाये थे। वह अपने आप ही सब करता रहता था। उसमें थोडा बीसपंथी जैसा भी अन्दर करते होंगे। कुछ मालूम नहीं था, भगवानका ओर्डर दे उसके बाद तैयार होता था। मन्दिर हुआ, गुरुदेवने कहा, अब प्रतिष्ठा करनी है, थोडे महिनेमें, दोे-तीन महिनेमें। भगवान लेने कौन जाये? गुरुदेवने हमें कहा, भगवान लेने आप जाइये। जयपुरमें भगवान मिलते हैं, वहाँसे ले आना। फिर हमारे साथ कौन था? जडावबहन था। वह जयपुर जाते थे। जडावबहन और इन्दुभाई। उनके पहचानवाले थे। गुरुदेवने कहा, प्रतिमाजी जयपुरमें होती है, वहाँसे ले आना। उनके साथ हम गये। वहाँ गये तो हमें एक पण्डित चैनसुखलाल मिल गये। उनके वांचनमें हम जाते थे। रातको वांचन करते थे, वहाँ बैठते थे। सोनगढसे