Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-०५२

पहचाने। उसे तोडनेका प्रयत्न (करे) अर्थात अन्दर श्रद्धा करे, ज्ञान करे और उस ओर लीनता करे तो प्रगट होता है। वांचन, विचार आदि करना चाहिये। तत्त्वके विचार और उस एक ही में स्थिर नहीं रह सके तो स्वाध्याय करे, वांचन करे। शास्त्रका वांचन करे। जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्रकी महिमा, भक्ति और शास्त्र स्वाध्याय आदि सब करे। सब बीचमें आता है, लेकिन यथार्थ ज्ञान हो तो उसे यथार्थ पुरुषार्थ उठे। यथार्थ ज्ञानके बिना यथार्थ ध्यान हो नहीं सकता। यथार्थ ज्ञान करे तो ही उसे यथार्थ पुरुषार्थ उठे।

मुमुक्षुः- ज्ञायकके द्वार पर टहेल लगानी, ऐसा कहा। तो हम बाहरके द्वारा पर तो भटकते हैं। वह समझमें आता है, लेकिन ज्ञायकके द्वार टहेल कैसे लगानी?

समाधानः- ज्ञायककी लगनी लगे, ज्ञायक.. ज्ञायक, ऐसे ज्ञायककी धून लगे। ज्ञायकके सिवा कहीं रुचे नहीं, वह ज्ञायकके द्वारा पर लगाना है। उसके हृदयमें ज्ञायक.. ज्ञायक.. कैसे ज्ञायक पहचानमें आये? बारंबार उसे ज्ञायक ही स्मृतिमें आता रहे। यह सब है, लेकिन मुझे ज्ञायक नहीं दिख रहा है। विभाव आदि सब दिखता है, विकल्पकी जाल दिखती है, परन्तु इसमें ज्ञायक नहीं दिखता है। ऐसे ज्ञायककी धून लगे, ज्ञायककी लगनी लगे, वह ज्ञायकके द्वार पर टहेल लगाना है। ज्ञायक कैसे पहचाना जाय? वह टहल है। बारंबार, दिन और रात उसकी लगनी लगे। ज्ञायकके सिवा कहीं चैन पडे नहीं।

भगवानके द्वार पर टहेल लगाये कि भगवानके द्वार कैसे खूले? भगवानके मन्दिरमें कैसे जाऊँ? वैसे यहाँ ज्ञायककी धून लगे। ज्ञायकके द्वारा कैसे (खूले)? मुझे ज्ञायक कैसे पहचानमें आये? ज्ञायकके दर्शन कैसे हो? वैसे ज्ञायककी धून लगे, ज्ञायककी लगनी लगे। उसे उसके द्वार पर टहले लगानी (कहा जाता है)। ज्ञायक.. ज्ञायक.. उसके हृदयमें ज्ञायकदेवकी धून लगे, लगनी लगे। वह टहेल लगाना है। बाहरमें भटकना वह नहीं, ज्ञायकके द्वार पर ही टहेल लगानी, उसकी लगनी लगे।

मुमुक्षुः- निरंतर एक ही लगनी।

समाधानः- एक ही लगनी उसे होती है। रात और दिन उसे ज्ञायक ही याद आये। विकल्पजालमें बाहरमें रहता है, लेकिन उसे ज्ञायककी ही धून लगे, ज्ञायककी लगनी लगे।

समाधानः- जातिस्मरणका अर्थ तो पूर्वका स्मरण हो, ऐसा उसका अर्थ है। पूर्वका स्मरण आता है। अभी देवभवमें हैं। देवके रूपमें हैं।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- जो सुना हो वह सब स्मरणमें आये। बाकी मतिकी निर्मलताके कारण