३१२ भविष्यका (जाने) वह अलग बात है। बाकी जातिस्मरणमें तो पूर्वका स्मरण आता है।
मुमुक्षुः- भविष्यमें क्या होगा वह सुना हो, वह भी याद आये।
समाधानः- भविष्यमें क्या होनेवाले हैं, वह सुना हो, वह याद आये। जातिस्मरणके विषयमें वही है। पूर्वमें जो सुना है, उसमें भविष्यके भव भी सुने होते हैं न, वह याद आते हैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके दूसरे भव जो सुने हैं वह याद आते हैं।
समाधानः- हाँ, सुने हुए स्मरणमें आता है। वह कुछ पढा नहीं था। वह पुराणमें नहीं पढा था। स्थानकवासीमें तो समवसरणका वर्णन तो तीन गढ होते हैं, भगवान होते हैं, ऐसा होता है न। समवसरणका वर्णन जो दिगंबरमें आता है, वह पढा नहीं था। वह तो ऐसे ही (स्मरणमें आया था)। जो दिगंबरमें आता है, उसी प्रकार आया था। वह कुछ पढा या सुना नहीं था। वर्तमानमें पढा, सुना हो वह याद आये ऐसा नहीं है। वर्तमानका हो तो वह तो वही हो गया। पढा, सुना हो, उसका कोई अर्थ नहीं है। पूर्वमें जो सुना था, वह अंतरमेंसे याद आया।
मुमुक्षुः- यहाँ समवसरण बनाया उसके पहले... समवसरणः- वह तो उसके पहले हुआ था। यह तो संवत १९९३ की सालमें हुआ था। समवसरण तो १९९८की सालमें हुआ। समवसरणका तो बहुत वर्णन आता है। कहते थे, वह मैंने कुछ सुना नहीं था। गुरुदेव तीर्थंकर होनेवाले हैं, वह मैंने उनके पाससे नहीं सुना था। यह तो बहुत साल पहलेकी बात है। १९९३, १९९४की सालमें गुरुदेव हीराभाईके मकानमें थे। उस वक्त किसीको कुछ कहते नहीं थे कि उन्हें स्वप्न आया और तीर्थंकर होनेवाले हैं, गुरुदेवसे कोई बात नहीं सुनी थी। गुरुदेव उस वक्त बाहर कुछ नहीं कहते थे। हीराभाईके बंगलेमें गुरुदेवने परिवर्तन किया, तब हीराभाईके बंगलेमें थे। गुरुदेव कुछ नहीं कहते थे। वह सब तो अंतरमेंसे आया। बादमें मैंने गुरुदेवको कहा। इसलिये गुरुदेवने कहा कि, ऐसा तो मुझे भी अन्दरमें आता है।
.. मुझे तो ऐसा लगा था कि, मैं गुरुदेवको कहती हूँ, उनको कैसा लगेगा? ऐसा होता था। गुरुदेव बाहर नहीं कहते थे। गुरुदेव राजकुमार थे, गुरुदेव बाहर नहीं कहते थे। उन्हें स्वप्नमें आया था। तीर्थंकर होनेवाले हैं, अंतरमेंसे उन्हें ऐसा आता था, अन्दरसे स्वप्न आते थे। गुरुदेवको ऐसा सब होता था, लेकिन वह बाहर नहीं कहा था। मुझे कुछ नहीं मालूम था।
मुमुक्षुः- आपने कहा तब..
समाधानः- मैंने गुरुदेवको कहा कि मुझे ऐसा आता है कि आप राजकुमार थे। फिर गुरुदेवने कहा कि हाँ, मुझे स्वप्न आया था, दीक्षा लेनेके बाद तुरंत, कि