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उनका भाव क्या था?
समाधानः- अपना हृदय बाहर कहते थे। अन्दर बहुत रखा, अब स्वयं बाहर कहते थे। यथातथ्य बात है, ऐसे बाहर कहते थे। ऐसे ही कोई बात स्वीकारे ऐसे नहीं थे। स्वयं अन्दर परीक्षा करके करते, उन्हें अन्दरसे ठोस लगा था। स्वानुभूति आदिकी सब बातें उन्होंने
प्रश्न-चर्चा करके दृढ किया है। ... वह प्रश्न है, इससे अतिरिक्त दूसरे कितने प्रश्न पूछे हैं।
प्रश्न-चर्चासे साबित किया है। बारंबार पूछते थे। सभी बातें उन्होंने
प्रश्न-चर्चासे दृढ की है। यह सब कहते वक्त ऐसा विचार आता था कि, इसमें इतने प्रश्न हुए हैं, अब इसमें क्या प्रश्न होंगे? उसे कैसे साबित करना। यह तो
प्रश्न- चर्चासे कुछ हृदय पकडमें आये, ऐसी थी। सिद्ध करे, ऐसे ही कुछ नहीं स्वीकारते थे।
शास्त्र पढे तो यह सब पढकर नक्की किया कि दिगंबरमें सब यथार्थ है। दूसरेमें कुछ इधर-उधरका आये तो इसमें यह है, इसमेें यह है, इसमें यह क्षति है, सब अन्दरसे स्वयं विचार करके नक्की करते थे। कितनी सूक्ष्मतासे सब दृढ करते थे। सब बातें वह मान ले ऐसा नहीं था। एकदम परीक्षा (करनेवाले थे)। स्वानुभूतिके भी कितने प्रश्न पूछे हैं। राजकोटमें पूछे हैं, बहुत जगह, जामनगरमें पूछे हैं। बहुत बार पूछा है।
मुमुक्षुः- यह तो आपने आज ही स्पष्ट किया। हमें तो ऐसा मालूम था कि, गुरुदेवने अमुक प्रश्न एक बार पहले पूछे थे।
समाधानः- इतने तो हैं, दूसरे भी बहुत प्रश्न पूछे हैं।
भगवती मातनो जय हो!