Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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टहेल लगानी। आज तक दूसरी टहेल लगानेका सुना था, परन्तु ज्ञायकके द्वार पर टहेल लगाना तो आपने ही बताया।

समाधानः- वही टहेल लगानी है। ज्ञायकके द्वार पर ही टहेल लगानी है, तो ही प्राप्त होता है।

मुमुक्षुः- आप आशीर्वाद दीजिये, हम टहेल लगाये।

समाधानः- यही करना है। गुरुदेवने यही मार्ग बताया है और यही करना है। ज्ञायक.. ज्ञायक। गुरुदेव कहते थे, तू चैतन्य भगवान है। सुबह आता है न? तू परमात्मा है, तू परमात्मा है ऐसा नक्की कर। गुरुदेवने यही कहा है और यही करना है। ज्ञायकदेवकी महिमा करके उसके द्वार पर टहेल लगानी है।

मुमुक्षुः- माताजी! पुरुषार्थ थोडा मन्द हो और दृढता सच्ची हो तो भयभीत होने जैसा है? पुरुषार्थ थोडा मन्द हो और दृढता पूर्ण हो तो?

समाधानः- पुरुषार्थ ज्यादा करना। दृढता है ऐसा लगे, परन्तु जो दृढता अन्दरसे गहराईसे आनी चाहिये, उसमें सहज दृढता अलग होती है, विकल्प सहितकी दृढता अलग होती है। तो भी स्वयंको लगता है दृढता तो बराबर है, यही मार्ग है, ऐसा लगे स्वयंने दृढता की हो तो। स्वयं प्रयत्न नहीं कर सकता है, प्रयत्न करे, टहेल लगाये, बारंबार प्रयत्न करे, नहीं हो तो। बहुत लोगोंको ऐसा लगे कि दृढता तो बराबर है कि यही मार्ग है, लेकिन होता नहीं है। स्वयंके प्रयत्नकी कमी है।

उसमें भक्ति साथमें आ जाती है। ज्ञायककी महिमा, ज्ञायककी भक्ति जिसे हो वह आगे बढे बिना नहीं रहता। ज्ञायक.. ज्ञायक.. मुझे ज्ञायकके सिवा कुछ नहीं चाहिये। ऐसी ज्ञायककी भक्ति अन्दर आनी चाहिये। मैं देखुँ तो ज्ञायक, मुझे निद्रामें ज्ञायकको देखना है, मुझे बैठते हुए, खाते-पीते मुझे ज्ञायक ही चाहिये। ज्ञायकदेवकी महिमा, ज्ञायककी भक्ति, ज्ञायककी स्तुति, ज्ञायकको देखना है, ज्ञायकके दर्शन करने हैं, वह ज्ञायककी भक्ति है।

जैसे भगवानके द्वार पर मुझे भगवानके दर्शन करने हैं, भगवानकी स्तुति करुँ, भगवानकी पूजा करुँ। उसी प्रकार मुझे गुरुदेवकी वाणी सुननी है, गुरुदेवके दर्शन करने हैं, गुरुदेवके दर्शन करुँ, गुरुदेवको देखता ही रहूँ, ऐसा होता है।

वैसे मैं ज्ञायकको ही देखता रहूँ, ज्ञायकके गुणग्राम करुँ, ज्ञायककी पूजा करुँ। ज्ञायक तो ज्ञायककी भक्तिसे प्रगट हुए बिना रहे नहीं, वैसे भक्ति हो तो। ज्ञायकको पहचानकर कि यही ज्ञायक है, दूसरा नहीं है। ज्ञायकका लक्षण पहचानकर नक्की करे के यही ज्ञायक है। अब, मुझे ज्ञायक ही चाहिये। जैसे जिनेन्द्रदेव, गुरुके लक्षणसे पहचानकर नक्की करे कि यही सत्पुरुष है, यही गुरु है और यही देव है। फिर इस देवकी पूजा