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पर्याय, भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकालका कुछ नहीं जानना ऐसा नहीं है। स्वयंका भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल, स्व-परके द्रव्य-गुण-पर्याय, उसमें नहीं जानना ऐसा कुछ आता ही नहीं। इसलिये ज्ञानस्वभाव ... भी जान सकता है। ऐसा ही कोई वस्तुका अचिंत्य स्वभाव है। ऐसा विचार करके... परन्तु अन्दर महिमा आये वह तो स्वयंको करना है न। अंतर परिणतिमें कैसे लाना वह स्वयं कर सकता है। परिणतिमें महिमा कैसे आये वह (स्वयं कर सकता है)। ज्ञानस्वभाव कोई अचिंत्य है।
पानीका स्वभाव ठण्डा है। ठण्डा है तो कितना ठण्डा है? उसका कोई नाप नहीं कह सकते। वह तो एक दृष्टांत है।
वैसे ज्ञानस्वभाव। ज्ञानमें नहीं जानना ऐसा कुछ नहीं आता। (यदि नहीं जानना आये) तो वह स्वभाव कैसा? जिस स्वभावमें मर्यादा आ जाय, वह वस्तुका शाश्वत स्वभाव नहीं कहा जाता। जिसमें मर्यादा बाँध ले कि ज्ञान इतना ही जाने। तो वह अनादिअनन्त शाश्वत गुण ही नहीं कहलाये। जिसकी मर्यादा हो, वह स्वतः स्वभाव नहीं कहलाता। जो अनादिअनन्त स्वभाव हो उसमें मर्यादा ही नहीं होती। जो ज्ञान काम करे वह पूरा ही करे। उसमें अधुरापन नहीं होता।
आकाशका अवकाश देनेका स्वभाव है तो पूरा अवकाश देता है। चाहे जितने द्रव्य आ जाय, तो भी वह अवकाश देता है। उसमें मर्यादा नहीं होती। पदार्थ ऐसी अनन्तासे भरा है। ऐसी अनन्ततासे भरा ज्ञानगुण, ऐसा आनन्दगुण, ऐसे अनन्त गुण हैं। अनन्त स्वभावमेंसे कितने तो वाणीमें नहीं आते। वह तो स्वयं नक्की करे तो होता है। बाकी अंतर परिणतिमेंसे महिमा लानी वह स्वयंको बाकी रहता है।