Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 349 of 1906

 

ट्रेक-

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चाहे जैसा राजा हो, चक्रवर्ती हो, लौकिक कायामें हो, राजके कायामें हो, तो भी परिणति तो भिन्न न्यारी की न्यारी रहती है। प्रशस्त भावोंमें हो। चक्रवर्तीको बडी पूजा आदिके प्रकार हो, देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावनाका प्रसंग हो, तो भी उसकी परिणति न्यारीकी न्यारी होती है। एकत्वबुद्धि नहीं होती। अशुभभावसे बचनेको शुभभावमें जुडे तो भी ज्ञायककी परिणति तो उसे भिन्न ही भिन्न होती है। ज्ञायककी परिणतिको और उपयोगको कोई विरोध नहीं है। ज्ञायककी परिणति चालू ही होती है और उपयोग बाहर होता है। कोई बार उपयोग पलटकर स्वानुभूतिमें जाता है और बाहर आये, तो भी ज्ञायककी परिणति उसे हर समय चालू है। उसमें उसे विरोध नहीं है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! परिणति त्रयात्मक है या ज्ञानात्मक है? समाधानः- प्रयात्मक? मुमुक्षुः- त्रयात्मक-तीनों। ज्ञान, दर्शन, चारित्र तीनों परिणतिमें है? समाधानः- ज्ञायककी परिणति श्रद्धा, ज्ञान और गृहस्थाश्रममें आंशिक स्वरूप रमणता है। अनंतानुबंधीका जो कषाय टूट गया है, इसलिये आंशिक स्वरूपाचरणचारित्र है। इसलिये दर्शन, ज्ञान, चारित्र (तीनों हैं)। पद्धतिके हिसाबसे चारित्र नहीं कह सकते, परन्तु स्वरूपाचरणचारित्र अमुक अंशमें लीनता अपनेमें है। एकत्वबुद्धिकी लीनता टूट गयी इसलिये अंतरमें ज्ञायक परिणतिकी लीनता आंशिक है। परन्तु उसे पद्धतिके हिसाबसे चारित्रकी लीनता तो पाँचवा गुणस्थान और छट्ठा-सातवाँ गुणस्थान आये, तब पद्धति-शास्त्र पद्धति अनुसार तब चारित्र कहलाता है। बाकी उसे लीनता है, अन्दर ज्ञायक परिणतिमें तीनों हैं। ज्ञायकमें श्रद्धा, ज्ञायकका आश्रय श्रद्धामें, ज्ञानका आश्रय, ज्ञान भी उसमें और लीनता भी उसमें है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!
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