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समाधानः- गुरुदेवने तो अपूर्व वाणी बरसायी है। महापुरुष जन्म ले, उनके पीछे कितने ही होते हैं। गुरुदेवके पीछे। गुरुदेवको अनेक प्रकारके स्वप्न तीर्थंकरत्व सम्बन्धित आते थे। तीन लोकको गुरुदेव आह्वान करते हैं, यहाँ आओ, हितके लिये। तीन लोक। मात्र भरत क्षेत्रको ही नहीं, तीन लोकको आह्वान कौन करे? स्वयं तीन लोकसे उत्कृष्ट हो तो मारे न। स्वयं सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकरका द्रव्य हो उसे ही ऐसा आये। तीन लोकको आह्वान करे कि हितके लिये यहाँ आओ। ऐसे स्वप्न गुरुदेवको तीर्थंकरत्व सम्बन्धित स्वप्न बहुत आते थे।
मुमुक्षुः- स्वाध्याय मन्दिरमें .. आप बैठे हो और समवसरणमें जा रहे हो, वह दृश्य तो इतने सुन्दर लगते हैं...
समाधानः- गुरुदेवके पास बहुत सुना है। भगवान विराजते हैं, मुनिओंका झुंड विचरता है, दिगंबर मुनिओंका। मार्ग चालू है, चतुर्थ काल वर्तता है। यहाँ पंचम कालमें मुनिओंके दर्शन तो दुर्लभ है। यह महाभाग्य, गुरुदेव पधारे वह महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- सीमंधर भगवान उस वक्त क्या करते थे? कैसे थे?
समाधानः- क्या करते हो? समवसरणें बैठे हो। उनको करना तो कुछ नहीं है। कृतकृत्य हो गये हैं, वीतराग हो गये हैं। उन्हें कुछ करना नहीं होता। दिव्यध्वनिका काल हो उस वक्त दिव्यध्वनि छूटती है। बाकी वे तो आत्मामें विराजते हैं। उन्हें बाहरका कुछ नहीं है। शरीरमात्र है। बाकी आत्मामें विराजते हैं। उनके देहका दिदार भी अलग, सब अलग। कैसे लगते हैं? उसे क्या कहे?
मुमुक्षुः- महाविदेहके राजकुमार और वर्तमानके गुरुदेव, इन दोनोंके बाह्य आकारमें तो बहुत फर्क होता है न? राजकुमार है इसलिये झरीयुक्त वस्त्र पहने हो और वर्तमानमें गुरुदेव बाल ब्रह्मचारी, तो कैसे मालूम पडे?
समाधानः- वह जातिस्मरणका ही विषय है। मति निर्मलमें जातिस्मरणमें जाननेमें आता है। शास्त्रोंमें नहीं आता है? कि मैंने इसे इतने भव पहले देखा है। ऐसा शास्त्रोंमें आता है। शास्त्र विरूद्ध कुछ नहीं है।
मुमुक्षुः- आपने उस दिन कहा था न कि गुरुदेवका विहार हो तब ऐसा होता था कि इनको पहले देखा है।
समाधानः- हाँ। गुरुदेवको कहीं देखा है, ऐसा होता था। पहले मैं कहती थी, सूरतमें कहती थी, हिंमतभाईको कहती थी। गुरुदेवको कहीं देखा है। जातिस्मरण.. यह है, उनको मैंने (देखा है)। पूर्वमें थे, आहार देते हैं, सब आता है। जातिस्मणरके एसे बहुत दृष्टांत आते हैं।
मुमुक्षुः- स्वयंने जो देखा हो वह जातिस्मरणमें स्पष्ट दिखाई दे।