Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३५८ है। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य तो कोई अलग ही था।

मुमुक्षुः- आपश्रीने प्रकाशित किया।

समाधानः- उनको ऐसा लगता था कि, मैं तीर्थंकर हूँ। तीर्थंकरके स्वप्न आते थे कि मैं तीर्थंकर हूँ। तीर्थंकरके स्वप्न गुरुदेवको आते थे। उनको तो पहले आता था। मुझे तो बादमें आया, परन्तु उनको तो पहले आता था।

मुमुक्षुः- गुरुदेवने उस वक्त तो कुछ बाहर नहीं कहा था।

समाधानः- वह बात किसीको नहीं कहती हूँ, यह गुरुदेवकी बात ही कहती हूँ कि यह गुरुदेव भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं। यहाँ पधारे, वह महाभाग्यकी बात है।

मुमुक्षुः- गुरुदेव यह शब्द बोले न, त्रिलोकीनाथने टीका लगाया।

समाधानः- स्वंयने कहा कि त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब तुझे क्या चाहिये? विदेहक्षेत्रमें सीमंधर भगवानने कहा कि यह राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं। वह बात गुरुदेवने सुनी। इसलिये कहा कि त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब क्या चाहिये? ऐसा गुरुदेवने कहा।

मुमुक्षुः- बहुत जबरजस्त बात है।

समाधानः- विदेहक्षेत्रमें भगवान विराजते हैं। गुरुदेवके स्वप्न आते थे। स्वयं राजकुमार हैं। तीर्थंकरत्वके स्वप्न उन्हें आते थे। उनको यह सब स्फुरणा होती थी। सीमंधर भगवान साक्षात विदेहक्षेत्रमें विराजते हैं। उनकी वाणीमें आया कि यह राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाला है। गुरुदेवने सुना, इसलिये कहा, त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब क्या चाहिये?

मुमुक्षुः- .. चलती थी और स्वयंको..

समाधानः- गुरुदेवने बादमें कहा कि मुझे तीर्थंकरके स्वप्न आते हैं। मुझे तो मालूम भी नहीं था कि गुरुदेवको तीर्थंकरके स्वप्न आते हैं। यहाँ तो कुदरती सहज आया।

मुमुक्षुः- गुरुदेवको ॐ ध्वनि भी वांकानेरमें ही आया न।

समाधानः- हाँ।

मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शनके पहले भी १२ साल पहले।

समाधानः- हाँ। ॐ ध्वनि, (संवत) १९७७की सालमें। ॐ ध्वनि पहली बार वांकानेरमें, दूसरी बार उमरालामें, तीसरी बार विंछीयामें। तीन बार (आया)। विंछीयामें थोडा ज्यादा आया, परन्तु शुरुआत वांकानेरसे हुयी। १९७७.

मुमुक्षुः- ऐसे तीर्थंकर भगवान जब ॐ कार फरमाये, तब वाणी झेलनेवाले भी.. मुमुक्षुः- बहिनश्री प्रमुख श्रोता थे। हमें तो उनके हिसाबसे सब लाभ मिला।