Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-०५९

समाधानः- ॐ कार भजनेसे निर्विकल्पतामें आ सकता है, ऐसा हीं है। वह तो ध्यान-शुभध्यान है। ज्ञायकके अवलम्बनसे निर्विकल्पता होती है। ॐके ध्यानसे निर्विकल्पता नहीं होती। ऐसा नहीं है। ॐ तो भगवानकी वाणी है। ॐका ध्यान वह वाणीका ध्यान है। अन्दर साथमें ज्ञायकका ध्यान होना चाहिये। शुद्धात्माके ध्यानसे अन्दर जा सकता है, ॐके ध्यानसे नहीं जा सकते। वह तो वाणी है, भगवानकी वाणी है, ठीक है, शुभभाव है। ॐको याद करना शुभभाव है, परन्तु अन्दर शुद्धात्मामें जानेके लिये ज्ञायकका आश्रय (चाहिये)।

मुमुक्षुः- भाव और परिणाम किस प्रकारके होते हैं? भाव और परिणाम, जब आत्माको निर्विकल्प दशा होती है, उससे पहले।

समाधानः- वह तो उस सम्बन्धित ही होते हैं। उसे नाम क्या दे, भाव और परिणामको। ज्ञायककी ओर परिणति, ज्ञायकका अवलम्बन, ज्ञायककी श्रद्धा, ज्ञान, लीनता सब ज्ञायककी ओर है।

मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन होता है तब किस प्रकारका आनन्द आता है?

समाधानः- स्वयं पुरुषार्थ करे, ज्ञायककी उग्रताका। स्वयंको पुरुषार्थकी ओर ही ध्यान होता है। ज्ञायककी उग्रताका पुरुषार्थ (होता है)। उसका नियम नहीं बाँध सकते। पुरुषार्त कब उठे? स्वयंको ऐसा होता है कि ज्ञायक करीब है। बाकी उसका नियम नहीं बाँध सकते।

मुमुक्षुः- ऐसा होता है क्या कि ज्ञायक समीप है?

समाधानः- समीप है, परन्तु स्वयंको विश्वास लाना... स्वयं तो पुरुषार्थकी धून, उसकी परिणतिमें जाता है। ज्ञायककी उग्रता, ज्ञायकके सिवा कोई रस नहीं है, ज्ञायककी ही महिमा, ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायकदेव है। दिव्य महिमाधारी। सब रस उड जाता है। अन्दर चैतन्यमें जिसको रस लग जाय, सबसे विरक्त होकर अंतरमें चला जाता है। कहीं उसे रस नहीं लगता, कोई विकल्पमें टिक नहीं सकता। ज्ञायककी धून लगे। ज्ञायकमें ... परन्तु ज्ञायककी ओर उग्रता (होती है)।

.. फिर १९८९की सालमें गुरुदेवके साथ चातुर्मास करने गयी थी। फिर तो १९९०की सालमें, और उसके बाद तो १९९१में यहाँ सोनगढमें आ गये। गुरुदेवने परिवर्तन किया उसके बाद यहाँ आ गये। पहले वांकानेरमें थे। लाठीना उतारामें थे। १९९१ से १९९३।

.. गुरुदेवकी वाणी ही ऐसी अपूर्व थी। गुरुदेव इस पंचमकालमें जन्मे, महाभाग्य! गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य स्वयं यहाँ पधारे वह महाभाग्यकी बात है। उनकी ऐसी वाणी सबको सुनने मिली। बरसों तक वाणी बरसायी है। ऐसा इस कालमें बनना मुश्किल। ४५-४५ साल तक सब मुमुक्षुओंको उनकी वाणी मिली। उनका सान्निध्य मिला, महाभाग्य