Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३९२ है ऐसा ज्ञान भी जानता है। ज्ञायकको मुख्य रखकर ज्ञान सब जानता है। ज्ञान वस्तुको जैसी है वैसी जानता है। अभेद निश्चय वस्तु स्वरूप क्या है वह जानता है, उसके गुण और उसकी पर्याय, सबको जानता है। जैसे श्रद्धाका बल द्रव्य पर है, वैसे ज्ञानका बल भी उस ओर है। निश्चय और व्यवहार जैसा है वैसा ज्ञान जानता है। जहाँ जिसका बल हो, उस प्रकारसे ज्ञान सब जानता है। ज्ञानकी डोरी उस ओर है, श्रद्धा उस ओर है, लीनता भी उस ओर जाती है। द्रव्यमें स्थिर होनेके लिये लीनता भी वहाँ जाती है।

मुमुक्षुः- ज्ञानमें सब ज्ञात होनेके बावजूद उसका विषय तो चालू ही रहता है। समाधानः- जैसा है वैसा जानता है। दोनोंको जानता है। बल श्रद्धाका है, परन्तु ज्ञानका बल भी साथमें है। सब है। श्रद्धा मुख्य है। ज्ञानमें भी श्रद्धा, स्वयं श्रद्धा भी शुद्ध। सब गुण एक द्रव्यके ही हैं। लक्षणभेदसे भिन्न हैं।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
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