मुमुक्षुः- दीक्षा लेनेसे पहले जातिस्मरण होता है। वैराग्यका निमित्त बनता होगा या और कुछ?
समाधानः- उन्हें विकल्प आता है। दीक्षाके पहले जातिस्मरण होता ही है। ऐसा नियम है। निमित्त कुछ भी बने, परन्तु अन्दर होता है। दीक्षा भाव उत्पन्न होते हैं इसलिये जातिस्मरण होता है।
मुमुक्षुः- जातिस्मरण वैराग्यकी वृद्धिका (कारण बनता है)?
समाधानः- वैराग्य-वृद्धिका कारण बनता है। शास्त्रमें आता है न? वैराग्य-वृद्धिका कारण बनता है। पूर्वके दुःखोंको याद करके बहुत जीवोंको वैराग्य आता है। भवोंको याद करके बहुत जीवोंको वैराग्य आता है। वैराग्यका निमित्त बनता है। जो उस ओर मुडे उसे वैराग्यका कारण बनता है। आत्माकी ओर मुडनेवाला होता है, उसे वैराग्यका कारण बनता है।
मुमुक्षुः- जातिस्मरण आत्मप्राप्तिमें निमित्त बनता होगा?
समाधानः- जो आत्माकी ओर मुडनेवाला हो उसे निमित्त कहनमें आता है। शास्त्रमें बहुत कारण आते हैं न? अनेक जातके कारण आते हैं। जातिस्मरण, अमुक देवकी ऋद्धि, यह-वह, ऐसे बहुत कारण आते हैं। उसमें एक जातिस्मरण भी कारण आता है। जीव अपनी ओर मुडे उसे कारण बनता है। सबको कारण बने ही ऐसा नहीं होता। सबको वैराग्यका कारण बने, ऐसा भी नहीं होता। लौकिकमें बहुतोंको होता है, सबको होता है, ऐसा नहीं। जो आत्माकी ओर मुडनेवाला होता है, उसे कारण बनता है। भवांतरोंको याद करके जिसे वैराग्य आना होता है, उसे वैराग्यका कारण बनता है। इस जीवने अनन्त जन्म-मरण किये हैं। यह जीव अनन्त परिभ्रमण करता आ रहा है। आत्मा शाश्वत है। जो आत्मार्थी अपनी ओर मुडनेवाला होता है, उसे कारण बनता है।
मुमुक्षुः- तीर्थंकर भगवानको जन्मसे अवधिज्ञान तो होता है।
समाधानः- हाँ, अवधिज्ञान होता है, फिर जातिस्मरण होता है।
मुमुक्षुः- जातिस्मरणसे भी विशेष स्पष्टता अवधिज्ञानमें होती है?