Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

४०४ मुख्य काम करता है, अकर्ता तो उसमें साथमें आ जाता है। एक निवृत्तमय दशा, ज्ञायकता। ज्ञायक स्वयं निवृत्तस्वरूप है। अकर्ता हुआ, निवृत्तमय ज्ञायककी परिणति हुयी। उसे स्वभाव-ओरकी परिणति बढती जाती है। स्वभाव-ओरकी परिणति अपनी ओर बढती जाती है और पर-ओरकी परिणति, जो प्रवृत्ति छूटकर स्वभाव-ओरकी निवृत्त दशामें आगे जाता है और स्वभावकी निर्मलता बढती जाती है।

बाहर सबका अकर्तृत्व आया इसलिये वह क्या करेगा? किसके आश्रयसे मुनिपना पालेगा? शास्त्रमें आता है। ज्ञान ज्ञानमें आचरण करता हुआ, स्वयं अपने ही आश्रयसे आगे जाता है। स्वयं अपने स्वभावमें लीन होता है, ज्ञायकके आश्रयसे। ज्ञायकका आश्रय ही उसे आगे बढनेमें काम करता है। विभावसे विरक्ति है और ज्ञायकका आश्रय है। उसे स्वभाव-ओरकी महिमा है। इसलिये उसकी परिणति स्वभावमें आगे बढती ही जाती है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! दो सिद्धान्त नहीं रहे, सिद्धान्त तो एक ही रहा न?

समाधानः- सिद्धान्त एक ही है। ज्ञायक और अकर्तृत्व। भिन्न कहे उसमें अकर्ता आ गया। ज्ञायक कहे उसमें अकर्ता आ गया। सब उसमें आ गया। सिद्धान्त एक ही है।

मुमुक्षुः- दो सिद्धान्त एक समान हो तो जो आसान सिद्धान्त हो, उससे आगे बढनमें सरलता रहती है? अकर्तृत्वका सिद्धान्त आसान लगता है और ज्ञायकका सिद्धान्त (कठिन लगता है)। क्योंकि ज्ञायकका भाव तो पकडमें आता नहीं।

समाधानः- ज्ञायकका सिद्धान्त अस्तित्व-ओरका है। यह तो नास्तित्व-ओरका है। यथार्थ अकर्ता हो, वह ज्ञायक हुए बिना रहता नहीं। जो ज्ञायक होता है, वह अकर्ता हुए बिना रहता नहीं। उदासीन ज्ञायक है। स्वभावमें परिणति, स्वभावकी परिणति प्रगट हो और विभावसे विरक्ति होती है। अस्तित्व-ओरसे ज्ञायक और विभाव-ओरसे विरक्ति। पर, वह नास्तित्व-ओरका है-अकर्ता। वह आसान लगे, परन्तु अस्तित्व ग्रहण हुए बिना अकर्ता हो नहीं सकता। मात्र अकर्ता, अकर्ता नक्की किया, वैसे बुद्धिसे सच्चा अकर्ता नहीं होता। ज्ञायकको ग्रहण किये बिना सच्चा अकर्ता हो नहीं सकता। ज्ञायक हो तो ही अकर्ता होता है। दोनों सिद्धान्तमें एक ही आ जाता है। अस्तित्व ग्रहण करे तो ही वह नास्तित्व-(ओरसे) अकर्ता होता है।

मुमुक्षुः- मुख्यपने सिद्धान्त तो ज्ञायकका आश्रय।

समाधानः- मुख्य सिद्धान्त ज्ञायकका आश्रय (ले) तो ही आगे जाता है। उसमें गुणभेद पर, शक्ति पर उसकी दृष्टि नहीं है। वह तो उसने ज्ञानमें जान लिया कि अनन्त शक्तिसे भरा आत्मा (है)। उसे स्वानुभूतिमें अनुपम महिमा आयी, अनन्त अनुपम गुणोंसे