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भरपूर आत्मा, उसे स्वानुभूतिमें सब परिणति अनुभूतिमें आयी। तो भी उसकी दृष्टि तो एक अभेद ज्ञायक पर है। दृष्टि तो (एक पर है)। वह एक अभेद दृष्टि और ज्ञायकके आश्रयके जोरसे और ज्ञान साथमें काम करता है कि अधूरी पर्याय है, अभी आगे जाना है, वह सब ज्ञान साथमें काम करता है। लेकिन एक ज्ञायकके आश्रयसे आगे जाता है। विभावसे विरक्त और ज्ञायकका आश्रय। अंतरमें विरक्ति बढती जाती है, लीनता बढाता जाता है। ज्ञायकका आश्रय लिया है।
मुमुक्षुः- निरंतर जो साक्षीभाव रहता है, वह इस ज्ञायकके..
समाधानः- ज्ञायकके आश्रयसे। ज्ञायक साक्षीभावरूप रहता है। कर्तृत्व छूट गया, ज्ञायक-साक्षी हो गया, उदासीन ज्ञायक। स्वभाव-ओरसे ज्ञायक उदासीन साक्षीभाव हो गया। ज्ञायकमें साक्षीभाव आ गया।
मुमुक्षुः- जो सुख पीता रहता है, वह भी ज्ञायकके आश्रयसे?
समाधानः- अन्दर तृप्ति, संतोष है वह सब ज्ञायकके आश्रयसे है। ज्ञायकमें उसे मिल गया है। स्वयं ... है। तृप्ति है, संतोष है, शांति है, सब ज्ञायकके आश्रयमें उसे वर्तता है। सविकल्प दशामें हो तो भी उसे तृप्ति और संतोष वर्तता है। एक स्वानुभूतिमें अनुपम आनन्द आये वह एक अलग बात है, बाकी सविकल्प दशामें भी उसे तृप्ति, संतोष, शांति सब वर्तता है। एक ज्ञायकके आश्रयमें।
मुमुक्षुः- परके अकर्तृत्वमें बहिर्मुख दृष्टि हो जाय और ज्ञायकके आश्रयसे अंतर्मुख दृष्टि हो जाय, ऐसा भी नहीं है।
समाधानः- ज्ञायकका आश्रय लिया इसलिये अकर्ता हुआ। विकल्पसे मैं अकर्ता, मैं अकर्ता, अकर्ता ऐसे विकल्पसे अकर्ता हो, वह यथार्थमें अकर्ता नहीं होता है। उसकी परिणतिमें अकर्ता नहीं होता है। बुद्धिसे नक्की करता है।
मुमुक्षुः- वास्तविक अकर्ता नहीं है।
समाधानः- वह बुद्धिसे होता है। ज्ञायक होता है वही अकर्ता होता है। जो जाने सो जाननहारा, करे सो करतारा। जो करता है वह जानता नहीं और जानता है वह करता नहीं। जानता है वह जानता ही है। जानता है उसे ही कर्तृत्व छूटता है। फिर अल्प अस्थिरता रहती है। सम्यग्दर्शन हुआ तो ज्ञायक हो गया। कर्ताबुद्धि छूट गयी। अल्प अस्थिरताकी परिणति रहती है। उसे, लीनता बढाता-बढाता, स्वरूपमें लीन होते-होते तोडता जाता है।
मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! हमारा प्रश्न है, ... अंजन चोरने सेठका वचन प्रमाण मानकर सिद्धि प्राप्त की तो हम गुरुवचन प्रमाण मान ले तो सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है?
समाधानः- अंजन चोरको जो निःशंकता आयी वह तो व्यवहारसे निःशंकता आयी।