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मुमुक्षुः- माताजी! सत चिद आनन्द। चिदका अर्थ क्या है? सच्चिदानन्द स्वरूप।
समाधानः- सत चिद। चिद अर्थात ज्ञान होता है। चैतन्य ज्ञान चिद, ऐसा होता है। चिद अर्थात ज्ञान। सत ज्ञानानन्द स्वरूप है।
समाधानः- चेतन भी होता है और ज्ञान भी होता है। चिद अर्थात ज्ञान।
मुमुक्षुः- सत जो शब्द है, अस्तित्वगुण, उसमें भाव नहीं आता है। उसका मूल्य क्या है? जैसे हवाके बिना नहीं चलता, तो उसकी महत्ता बहुत है। वैसे अस्तित्वकी महत्ता बहुत है, परन्तु आनन्दमें जो भाव रहा है, वैसा सतमें भाव नहीं आता। सतकी महिमा, सत स्वरूप है, सतकी महिमा कैसे आये?
समाधानः- वह तो जो वस्तुकी मौजूदगी है, उस मौजूदगीमें गुण होते हैं। जिसकी मौजूदगी ही नहीं है, उसमें गुण कैसे? सत वस्तु है। एक वस्तु है, चैतन्य एक है। जड है, चैतन्य है, वैसे सब है। उसका अस्तित्व हो, उसमें ज्ञान होता है, आनन्द होता है। अस्तित्व हो उसमें यह सब है। अस्तित्व ही नहीं है, जिस वस्तुकी मौजूदगी ही नहीं है, तो ज्ञान और आनन्द किसमें होंगे? वह सब गुण है। ज्ञान, आनन्द सब।
सत अर्थात एक वस्तु है। एक हयाती है। मैं एक आत्मा हूँ। हूँ अर्थात एक